________________ चतुर्थ चर्चा : क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन एवं चारित्र 101 क्षयोपशम-सम्यक्त्व को ग्रहता (धारण करनेवाला) जीव, पहले अप्रमत्त गुणस्थान को प्राप्त हो है। वेदक-सम्यक्त्व सहित क्षयोपशम-चारित्र को मिथ्यादृष्टि वा अविरत व देशसंयत जीव, देशव्रत-ग्रहणवत् अधःप्रवृत्त वा अपूर्वकरण, इन दोय करण करि ग्रहण करै है। तहँ करण विषै गुणश्रेणी नाहीं है। सकल-संयम का ग्रहण समय तें लगाय गुण-श्रेणी हो है। (इ) इहाँ तै ऊपर अल्प-बहुत्व पर्यन्त जैसे पूर्वे देशविरत विषै व्याख्यान किया है, तैसे सर्व व्याख्यान यहाँ जानना। विशेषता इतनी, वहाँ जहाँ देशविरत कया है, इहाँ तहाँ सकलविरत जानना। (4) धवला, 1/169-179 के आधार पर तृतीय मिश्र गुणस्थान (सम्यग्मिथ्यात्व) को क्षायोपशमिक भाव, सम्यग्मिथ्यात्व -प्रकृति के उदय की मुख्यता से ही कहा है, उसी प्रकार चतुर्थ गुणस्थानवर्ती असंयत क्षायोपशमिक-सम्यग्दृष्टि को वेदक (क्षायोपशमिक) सम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण मिथ्यात्वादि के क्षायोपशमिक की मुख्यता से न मानकर सम्यक्त्व प्रकृति के उदय की प्रधानता से ही कहा समझना चाहिए, क्योंकि चल-मल-अगाढ़रूप शिथिलता का कारण सम्यक्त्व-प्रकृति का उदय ही है। इसी प्रकार पाँचवें संयतासंयत (देशविरत) गुणस्थान में अप्रत्याख्यानावरणकषाय का उदयाभावी क्षय एवं उन्हीं का सदवस्थारूप उपशम होने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से संयमासंयम रूप अप्रत्याख्यान चारित्र ही प्रगट होता है, इसमें संयम भाव की उत्पत्ति का कारण, त्रस-हिंसा से विरति भाव है और असंयम भाव की उत्पत्ति का कारण, स्थावर-हिंसा से अविरतिभाव है। इस गुणस्थान में भी अप्रत्याख्यानावरण कषाय का अनुदय, त्रस-हिंसा से विरतिरूप संयम अंश का कारण एवं प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय, स्थावरहिंसा से विरति न होने रूप असंयम-अंश का नियामक कारण है, इसमें क्षयोपशम का लक्षण घटित होने से संयमासंयम (देशविरति) को भी क्षायोपशमिक भाव कहा है। इसी क्रम से छठवें-सातवें प्रमत्तसंयत-अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में पाये जाने वाले क्षायोपशमिक-चारित्र को भी घटित कर लेना चाहिए।