________________ नवम चर्चा : अकषाय भाव ही सच्चा धर्म 171 परिणाम है कि कषाय और चारित्र का गठबन्धन देखने में आता है। ऐसे चारित्र का फल द्वारका नगरी का विनाश था। दशलक्षण पर्व के प्रथम चार धर्म - उत्तम-क्षमा, उत्तम-मार्दव, उत्तमआर्जव और उत्तम-शौच; क्रोध, मान, माया, लोभ के दूर होने पर या मन्द होने पर प्रगट होते हैं। ___मानव के व्यावहारिक जीवन के लिए ये चारों अत्यन्त उपयोगी हैं। अतिक्रोध, अति-मान, अति-माया और अति-लोभ, मानव-जीवन को कलुषित कर देते हैं। मनुष्य और परिवार की सुख-शान्ति को नष्ट कर देते हैं। आत्म-हत्याएँ, उन्हीं का फल हैं। मनुष्यों के अति-लोभ ने आज मानव-समाज को दुःख के गर्त में डाल दिया है। मनुष्य की तृष्णा, दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, वह शान्त नहीं होती। जिनके पास सब तरह के सुख-साधन हैं, उन्हें भी अन्याय से द्रव्य-संचय करते देख कर, खेद और आश्चर्य होता है। आखिर में वे इस अनावश्यक संचय का करेंगे क्या? इसी वर्ष महावीर-जयन्ती पर मुझे जैनेतर विद्वानों की एक गोष्ठी में भाषण करने का प्रसंग उपस्थित हुआ। भगवान महावीर के सिद्धान्तों में आज के युग के अनुरूप व्यावहारिक सिद्धान्त अपरिग्रहवाद है। आज की स्थिति में अहिंसा और अपरिग्रह - ये दो सिद्धान्त विश्व-शान्ति में सहायक हो सकते हैं, क्योंकि आज विश्व में हिंसा और परिग्रह के कारण ही विशेष अशान्ति है। भारत में भी यही स्थिति है; अतः सार्वजनिक भाषणों में अपरिग्रह का ही विवेचन किया जाता है। ___ मेरे भाषण के पश्चात् प्रश्नोत्तर में एक कम्युनिस्ट विद्वान् जैनों की आलोचना करने लगे। मैंने कहा, 'भाई ! सब धर्मों और उनके पालकों की यही स्थिति है। लोभ को छोड़ना सरल नहीं है। किन्तु वहाँ उपस्थित अन्य विद्वान भी कहने लगे - ‘आपका कहना ठीक है; किन्तु अहिंसा और अपरिग्रह पर जितना जोर आपके धर्म में दिया गया है, उतना अन्य किसी धर्म में नहीं दिया गया; अतः भगवान महावीर के अनुयायियों से