Book Title: Kshayopasham Bhav Charcha
Author(s): Hemchandra Jain, Rakesh Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ 166 क्षयोपशम भाव चर्चा है। इसी कारण मोही मुनि से निर्मोही गृहस्थ उत्कृष्ट बताया गया है। भावार्थ यह है कि जिसके मोह अर्थात् मिथ्यात्व नहीं है - ऐसा अव्रत सम्यग्दृष्टि भी मोक्षमार्गी है तथा वह सात-आठ भव, देव-मनुष्य के ग्रहण करके नियम से मोक्ष जाएगा। न सम्यक्त्व समं किञ्चित्, त्रैकाल्ये त्रिजगत्यपि। श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्व-समं नान्यत्तनूभूताम् / / अर्थात् संसारी जीवों का सम्यग्दर्शन के समान तीनों काल और तीन लोक में अन्य कोई कल्याण करनेवाला नहीं है तथा उनका मिथ्यात्व के समान तीन काल और तीन लोक में अन्य कोई अकल्याण करनेवाला नहीं है। भावार्थ यह है कि इस जीव का निकृष्टतम अपकार जैसा मिथ्यात्व करता है, वैसा अपकार करनेवाला, तीन लोक और तीन काल में कोई चेतन या अचेतनद्रव्य न है, न हुआ है, नहीं न होगा। विवेकी सम्यग्दृष्टि जीव, गृहस्थाचार में रहता हुआ भी सदैव संसार-शरीरभोगों से विरक्त ही रहता है तथा उसके अशुभरूप विषय-कषायों से बचने हेतु यथाशक्ति अणुव्रत-महाव्रतरूप सरागचारित्र को भी ग्रहण करने की भावनाअभ्यासरूप उद्यम वर्तता ही रहता है, क्योंकि उसे पता है कि 'पूर्णता के लक्ष से की गयी शुरुआत ही वास्तविक (सच्ची-यथार्थ) शुरुआत है।' शिवाकांक्षी - ब्र. हेमचन्द्र जैन 'हेम' (भोपाल)

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178