________________ 106 क्षयोपशम भाव चर्चा इन कारणों में मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, नरकायु, नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, व चतुरिन्द्रिय जाति, हुण्डक-संस्थान, असंप्राप्तसृपाटिका-शरीर-संहनन, नरकगति-प्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण - इन सोलह प्रकृतियों के बन्ध का कारण मिथ्यात्वोदय है, क्योंकि मिथ्यात्वोदय के अन्वय और व्यतिरेक के साथ, इन सोलह प्रकृतियों के बन्ध का अन्वय और व्यतिरेक पाया जाता है। निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि, अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ, स्त्रीवेद, तिर्यंचायु, तिर्यंचगति, न्यग्रोध-स्वाति-कुब्जक-वामन-शरीर-संस्थान, वज्रनाराच-नाराच-अर्धनाराच-कीलित-शरीर-संहनन, तिर्यंचगति-प्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र - इन पच्चीस प्रकृतियों के बन्ध में कारण अनन्तानुबन्धी-चतुष्क का उदय है, क्योंकि उसी के उदय के अन्वय और व्यतिरेक के साथ, इन प्रकृतियों का भी अन्वय और व्यतिरेक पाया जाता है। अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध-मान-माया-लोभ, मनुष्यायु, मनुष्यगति, औदारिक-शरीर, औदारिक-शरीरांगोपांग, वज्रवृषभसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी - इन दश प्रकृतियों के बन्ध का कारण अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क का उदय है, क्योंकि उसके बिना इन प्रकृतियों का बन्ध नहीं पाया जाता। प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध-मान-माया-लोभ - इन चार प्रकृतियों के बन्ध का कारण इन्हीं का उदय है, क्योंकि अपने उदय के बिना इनका बन्ध नहीं पाया जाता। असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशकीर्ति - इन छह प्रकृतियों के बन्ध का कारण प्रमाद है, क्योंकि प्रमाद के बिना इन प्रकृतियों का बन्ध नहीं पाया जाता। शंका - प्रमाद किसे कहते हैं? समाधान - चार संज्वलन-कषाय और नव नोकषाय - इन तेरह के तीव्र उदय का नाम प्रमाद है। शंका - पूर्वोक्त चार बन्ध के कारणों में प्रमाद का कहाँ अन्तर्भाव होता है?