Book Title: Kshayopasham Bhav Charcha
Author(s): Hemchandra Jain, Rakesh Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 142
________________ षष्ठम चर्चा : प्रवचनसार में शुभ-अशुभ-शुद्धोपयोग 137 परिणाम प्राप्त होता है - ऐसा नय और उपयोग का लक्षण यथासम्भव सब जगह जानना चाहिए।...' (तात्पर्यवृत्ति) प्रवचनसार, गाथा 181-182 .... अत्र योऽसौ रागादिविकल्पोपाधिरहितसमाधिलक्षणशुद्धोपयोगो मुक्तिकारणं भणितः / ..... अयमेकदेशनिरावरणत्वेन क्षायोपशमिकखण्डज्ञानव्यक्तिरूपः, स च पारिणामिकः सकलावऽऽरणरहितत्वेनाऽखण्डज्ञानव्यक्तिरूपः / .... अयं तु सादिसान्तत्वेन विनश्वरः स च अनाद्यनन्तत्वेना विनश्वरः। .... तत एव ज्ञायते शुद्धपारिणामिक भावो ध्ये यरूपो भवति, ध्यानभावनारूपो न भवति / कस्मात् / ध्यानस्य विनश्वरत्वादिति / .... एवं द्रव्यबन्धकारणत्वात् मिथ्यात्वरागादिविकल्परूपो भावबन्ध एव निश्चयेन बन्ध इति ... / अर्थात् यहाँ रागादि विकल्पों की उपाधिरहित समाधिलक्षण ‘शुद्धोपयोग' मुक्ति का कारण कहा गया है। ___ .... यह शुद्धोपयोग, एकदेश आवरण रहित होने से क्षायोपशमिक खण्डज्ञान की प्रगटतारूप है और वह पारिणामिक भाव, सम्पूर्ण आवरणों से रहित होने के कारण अखण्डज्ञान की प्रगटतारूप है। अविनश्वर है। .... इससे ही ज्ञात होता है कि शुद्धपारिणामिक भाव ध्येयरूप है, ध्यानभावनारूप नहीं है। वह ध्यानभावनारूप क्यों नहीं है? - ध्यान के विनाशशील होने से वह ध्यानभावनारूप नहीं है। इसप्रकार द्रव्य बन्ध का कारण होने से मिथ्यात्व-रागादि विकल्परूप भावबन्ध ही निश्चय से बन्ध है। ..... (तात्पर्यवृत्ति) प्रवचनसार, गाथा 183 '.....ततः स्थितमेतत्स्वपरभेदविज्ञानबलेन स्वसंवेदन ज्ञानी जीवस्वद्रव्ये रतिं परद्रव्ये निवृत्तिं करोतीति।......'

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