________________ 156 क्षयोपशम भाव चर्चा अब यदि कोई निर्विचारी पुरुष, ऐसी मिथ्या धारणा बना ले कि व्रत-शीलसंयमरूप व्यवहार-मोक्षमार्ग सच्चा मोक्षमार्ग नहीं है तो फिर हम यह व्यवहारव्रतादिक किसलिए पालें? सबको छोड़ देवें! तब तो वहाँ हिंसादि अव्रतरूप प्रवर्तने से उसका बहुत ही बुरा होगा, क्योंकि वहाँ अशुभ पापरूप प्रवर्तने से तो मोक्षमार्ग का उपचार भी सम्भव नहीं होगा। व्यवहार-मोक्षमार्ग (सराग-चारित्र) निश्चय-मोक्षमार्ग (वीतराग-चारित्र) का सहकारी निमित्त है, इसलिए उसे उपचार से मोक्षमार्ग संज्ञा है। वस्तुतः अणुव्रत-महाव्रतरूप व्यवहार-चारित्र अंगीकार करने पर ही देशचारित्रसकलचारित्र प्रगट होता है; इसलिए इन व्रतों को अन्वयरूप कारण जान कर, कारण में कार्य का उपचार करके इनको चारित्र या मोक्षमार्ग कहा है। हाँ, यह आवश्यक नहीं है कि व्यवहार-चारित्र ग्रहण किया है तो निश्चय-चारित्र प्रगट हो ही जायेगा, किन्तु जब भी प्रगटेगा, इसके होने पर ही प्रगटेगा, अन्यथा नहीं। यही कारण है कि श्री सिद्धचक्र महामण्डल पूजन-विधान की जयमाला में यह छन्द लिखा है - भावलिंग बिन कर्म खिपाई, द्रव्यलिंग बिन शिवपद जाई। यों अयोग कारज नहीं होई, तुम गुण-कथन कठिन है सोई।। अर्थात् हे भगवन् ! द्रव्यलिंग (धारण किये) बिना कोई मोक्ष चला जाए और भावलिंग (प्रगट हुए) बिना कर्मों का नाश हो जाए - यह बात जिस प्रकार असम्भव है, उसी प्रकार आपके गुणों का कथन कर पाना भी कठिन है। ___ इसका तात्पर्य यही है कि यद्यपि मोक्ष-प्राप्ति के लिए दोनों ही लिंग अनिवार्यरूप से कार्यकारी हैं, एक निमित्त है तो दूसरा उपादान / एक उपयोगी है तो दूसरा उपादेय; तथापि सरागता हेय है, वीतरागता उपादेय है। इस प्रकार यद्यपि मोक्षमार्ग में अट्ठाईस मूलगुणों के पालन करने रूप भेदरत्नत्रय अर्थात् शुभोपयोग का भी अनुष्ठान होता है, यही शुभोपयोगरूप सरागचारित्रांश, देवायु-प्रमुख पुण्य-प्रकृति के बन्ध का कारण है; तथापि हमें यह भी जानना चाहिए कि वस्तु का स्वभाव क्या है? क्योंकि जब तक हम वस्तु के स्वभाव से भलीभाँति परिचित नहीं होंगे तो हमारा सारा श्रम निरर्थक हो जाएगा, जैसा कि आज तक निरर्थक होता रहा है।