________________ 118 क्षयोपशम भाव चर्चा (3) धवला, पुस्तक 8, पृष्ठ 77 सोलस-कम्माणि कसाय-सामण्ण-पच्चइयाणि, अणु-मेत्त-कसाए वि संते तेसिं बंधुवलंभादो। अर्थ - (दसवें सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में) सोलह कर्म-प्रकृतियाँ (पाँच ज्ञानावरण + पाँच अन्तराय + 4 दर्शनावरण + एक यशःकीर्ति + एक उच्चगोत्र) कषाय-सामान्य के निमित्त से बंधनेवाली हैं, क्योंकि अणुमात्र कषाय के भी होने पर उनका बन्ध पाया जाता है। (4) आप्तमीमांसा, कारिका 98 अज्ञानान्मोहिनो बन्धो, नाऽज्ञानाद्वीत-मोहतः। ज्ञानस्तोकाच्च मोक्षः स्यात्, मोहान्माहिनोऽन्यथा।। 98 / / अर्थ - मोह सहित अज्ञान से बन्ध होता है, जो अज्ञान मोह से रहित है, वह (फलदान-समर्थ) कर्मबन्ध का कर्ता नहीं है और जो अल्पज्ञान, मोह से रहित है, उससे मोक्ष होता है, परन्तु मोह सहित अल्पज्ञान से कर्म-बन्ध ही होता है। (5) प्रवचनसार, गाथा 45 औदयिका भावाः बन्धकारणम्' इत्यागम-वचनं तर्हि वृथा भवति। परिहारमाह - औदयिका भावाः बन्ध-कारणं भवन्ति च, परं किन्तु मोहोदय-सहिताः। द्रव्य-मोहोदयेऽपि सति यदिशुद्धात्म-भावना-बलेन भावमोहेन न परिणमति तदा बन्धो न भवति / यदि पुनः कर्मोदय-मात्रेण बन्धो भवति, तर्हि संसारिणां सर्वदैव कर्मोदयस्य विद्यमानत्वात्सर्वदैव बन्ध एव न मोक्ष इत्यभिप्रायः। (तात्पर्यवृत्ति टीका) प्रश्न - ‘औदयिकभाव बन्ध के कारण है' - यह आगम-वचन वृथा हो जाएगा? __उत्तर - औदयिकभाव, बन्ध के कारण होते हैं, किन्तु मोह के उदय सहित होने पर ही। द्रव्य-मोह के उदय होने पर भी यदि (यह जीव) शुद्धात्म-भावना के बल से भाव-मोहरूप से परिणमन नहीं करता है तो बन्ध नहीं होता है। यदि कर्मोदय मात्र से बन्ध होता हो तो संसारी जीवों के सर्वदा ही कर्म का उदय विद्यमान होने के कारण सदा बन्ध ही होता रहता या होता रहेगा, कभी मोक्ष नहीं होगा - यह अभिप्राय है।