Book Title: Kshayopasham Bhav Charcha
Author(s): Hemchandra Jain, Rakesh Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 112
________________ चतुर्थ चर्चा : क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन एवं चारित्र 107 समाधान - कषायों में प्रमाद का अन्तर्भाव होता है, क्योंकि कषायों से पृथक् प्रमाद नहीं पाया जाता। देवायु के बन्ध का कारण भी कषाय ही है, क्योंकि प्रमाद के हेतुभूत कषाय के उदय के अभाव में अप्रमत्त होकर मन्द-कषाय के उदयरूप से परिणत हुए जीव के देवायु के बन्ध का विनाश पाया जाता है। निद्रा और प्रचला - इन दो प्रकृतियों के भी बन्ध का कारण कषायोदय ही है, क्योंकि अपूर्वकरण-काल के प्रथम सप्तम भाग में संज्वलन कषायों के उस काल के योग्य तीव्रोदय होने पर, इन प्रकृतियों का बन्ध पाया जाता है। देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक-तैजस-कार्मणशरीर, समचतुरस्र-संस्थान, वैकियिक-शरीरांगोपांग, आहारक-शरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक-शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थंकर - इन तीस प्रकृतियों के भी बन्ध का कषायोदय ही कारण है, क्योंकि अपूर्वकरण-काल के सात भागों में से प्रथम छह भागों के अन्तिम समय तक मन्दतर-कषायोदय के साथ इनका बन्ध पाया जाता है। हास्य, रति, भय और जुगुप्सा - इन चार प्रकृतियों के बन्ध का कारण अधःप्रवृत्त और अपूर्वकरण-सम्बन्धी कषायोदय है, क्योंकि उन्हीं दोनों परिणामों के काल-सम्बन्धी कषायोदय में ही इन प्रकृतियों का बन्ध पाया जाता है चार संज्वलन-कषाय और पुरुषवेद - इन पाँच प्रकृतियों के बन्ध का कारण बादर-कषाय है, क्योंकि सूक्ष्म-कषाय (सूक्ष्म-साम्पराय) गुणस्थान में इनका बन्ध नहीं पाया जाता। __ पाँच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय - इन सोलह प्रकृतियों का सामान्य कषायोदय (सूक्ष्म-साम्पराय) कारण है, क्योंकि कषायों के अभाव में इन प्रकृतियों का बन्ध नहीं पाया जाता। साता-वेदनीय के बन्ध का कारण योग ही है, क्योंकि मिथ्यात्व, असंयम और कषाय - इनका अभाव होने पर भी एकमात्र योग के साथ ही इस प्रकृति का

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