________________ 104 क्षयोपशम भाव चर्चा उपदेश है। इसलिए वहाँ छद्मस्थ, जिस काल में बुद्धिगोचर भक्ति आदि (शुभोपयोग) व हिंसा आदि (अशुभोपयोग) कार्यरूप परिणामों को छोड़कर आत्मानुभवनादि कार्यों में प्रवर्ते, उस काल में उसे शुद्धोपयोगी कहते हैं। __ यद्यपि यहाँ केवलज्ञानगोचर सूक्ष्म-रागादिक हैं, तथापि उसकी विवक्षा यहाँ नहीं की है, अपनी बुद्धिगोचर रागादिक छोड़ता है, इस अपेक्षा उसे 'शुद्धोपयोगी' कहा है; इसलिए द्रव्यानुयोग के कथन की विधि, करणानुयोग से मिलाना चाहे तो कहीं तो मिलती है, कहीं नहीं मिलती। जिस प्रकार यथाख्यात-चारित्र होने पर तो दोनों अपेक्षा शुद्धोपयोग है, परन्तु निचली दशा में द्रव्यानुयोग-अपेक्षा से तो कदाचित् शुद्धोपयोग होता है, परन्तु करणानुयोग-अपेक्षा से सदाकाल कषाय अंश के सद्भाव से शुद्धोपयोग नहीं है। इसी प्रकार अन्यत्र जानना।' (6) धवला, 7/9-13 षट्खण्डागम के मूल सूत्र में कहा है - सिद्धाः अबंधा।।7।। अर्थात् सिद्ध अबंधक हैं। क्योंकि सिद्ध बन्ध-कारणों से व्यतिरिक्त मोक्ष के कारणों से संयुक्त होते हैं। शंका - वे बन्ध के कारण कौनसे हैं? क्योंकि बन्ध और बन्ध के कारण जाने बिना मोक्ष के कारणों का ज्ञान नहीं हो सकता। कहा भी है - जे बंधयरा भावा, मोक्खयरा चावि जे दु अज्झप्पे। जे चावि बंध-मोक्खे, अकारया ते वि विण्णेया / / 1 / / अर्थात् जो बन्ध के उत्पन्न करनेवाले भाव हैं और जो मोक्ष को उत्पन्न करनेवाले आध्यात्मिक भाव हैं, तथा जो बन्ध और मोक्ष, दोनों को नहीं उत्पन्न करनेवाले भाव हैं, वे सब भाव जानने योग्य हैं। शंका - अतएव बन्ध के कारण बतलाना चाहिए? समाधान - मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग - ये चार बन्ध के कारण हैं और सम्यग्दर्शन, संयम, अकषाय और अयोग - ये चार मोक्ष के कारण हैं।