________________ 34 क्षयोपशम भाव चर्चा दशा में आ जाने से उन्हें बहिर-अवस्थित या अन्तर्बहिर-जल्प में स्थित भले कहा जा सकता है, किन्तु बहिरात्मा या मिथ्यादृष्टि कदापि नहीं। __क्या राजा श्रेणिक (क्षायिक सम्यक्त्वी) के जीव (नारकी) को बहिरात्मा कहा जा सकता है? 24. जो धर्म करना चाहता है, उसके लिए प्रथम शर्त यह है कि उसे अपने प्रति पूर्ण ईमानदार सत्यभाषी एवं संसार-परिभ्रमण के कारणों से पूर्णतः भयभीत होना, अत्यन्तावश्यक है। दिखावटी, बनावटी, सजावटी धर्म से कोसों दूर रहना परमावश्यक है। 25. आज जो धार्मिक व्यक्ति सदाचारी पापभीरू हैं, उन्हें मानार्थी/लोभार्थी वक्ता एवं श्रोता कह कर, राजनीतिरूप माया-प्रपंच-जाल फैलाकर, अधार्मिक सिद्ध किया जा रहा है एवं स्वयं सदाचारी न होने पर भी धनमद आदि के बल पर धर्मात्मा कहलाने का ढोंग किया जा रहा है। बाड़ खेत खाने लगी, पंच करें अन्याय / उदासीन राजा भये, न्याय कौन पै जाय / / 26. व्यवहारी-जीवों को व्यवहार-धर्म ही शरण होता है अर्थात् शुभाचरण छोड़ कर, निःशंक पापरूप प्रवृत्ति रखना (अशुभोपयोगी रहना) योग्य नहीं है। ऐसा नहीं माननेवाला व्यक्ति, नरक-निगोदगामी होता है। . (मो.मा.प्र. पृष्ठ 203 से 205, 253) 27. आगमानुकूल व्यवहार व्रतों का पालने वाला (विकल/सकल संयमधारी) जीव, पूज्यपने को प्राप्त होता है, किन्तु वही तत्त्व समझने की विशेष जिज्ञासा न होने से अथवा अध्यात्म-रसास्वादी धार्मिक मुमुक्षु जीवों के प्रति ईर्ष्याभाव रखने से मात्र व्यवहाराभासी होकर संसार में ही परिभ्रमण करनेवाला होता है। 28. इसी प्रकार आगमानुकूल संयम/संयमासंयम पालने वालों के प्रति जिसके मन में आदरभाव नहीं हो, वह सच्चा मुमुक्षु नहीं हो सकता, वह मात्र शुष्क ज्ञानी है। 29. जो इस नर-पर्याय एवं जिनधर्म की उत्कृष्टता पहिचान लेता है, वह अपने