________________ क्षयोपशम भाव चर्चा वीर्यान्तराय-मति-श्रुत-ज्ञानावरणानां सर्वघाति-स्पर्द्धकानामुदयक्षयात् सदुपशमाच्च देशघाति-स्पर्द्धकानामुदये मतिज्ञानं श्रुतज्ञानं च भवति / देशघाति-स्पर्द्धकानां रसस्य प्रकर्षाप्रकर्षयोगाद् गुणघातस्याऽतिशयाऽनतिशयवत्त्वात् तज्ज्ञानभेदो भवति। एवमवधि-मनःपर्यय-ज्ञानयोरपि स्वाऽऽवरण-क्षयोपशम-भेदात् क्षायोपशमिकत्वं वेदितव्यम्। अर्थात् वहाँ चार प्रकार के ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) क्षायोपशमिक ज्ञान हैं - आभिनिबोधिकज्ञान (मतिज्ञान), श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान / वीर्यान्तराय और मतिश्रुतज्ञानावरण के सर्वघाति-स्पर्द्धकों का उदय-क्षय और आगामी का सदवस्थारूप उपशम होने पर तथा देशघाति-स्पर्द्धकों का उदय होने पर क्षायोपशमिक मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं। देशघाति-स्पर्द्धकों के अनुभाग-तारतम्य से क्षयोपशम में भेद होता है। इसी तरह अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान भी क्षायोपशमिक होते हैं। अज्ञानं त्रिविधं-मत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं विभङ्गं चेति। तेषां क्षायोपशमिकत्वं पूर्ववत्। ज्ञानाऽज्ञानविभागस्तु मिथ्यात्वकर्मोदयाऽनुदयाऽऽपेक्षः। अर्थात् मिथ्यात्व-कर्म के उदय से मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान और विभंगज्ञान - ये तीन अज्ञान अर्थात् मिथ्याज्ञान (क्षायोपशमिक भाव) होते हैं। दर्शनं त्रिविधं क्षायोपशमिकं - चक्षुर्दर्शनमचक्षुर्दर्शनमवधिदर्शनं चेति। एतत्त्रितयमपि पूर्ववत् स्वावरणक्षयोपशमाऽऽपेक्षं द्रष्टव्यम्। अर्थात् तीन प्रकार का दर्शन क्षायोपशमिक होता है - चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, और अवधिदर्शन - ये तीन दर्शन, अपने-अपने आवरणों के क्षयोपशम से होते हैं। लब्धयः पञ्च क्षायोपशमिक्यः दानलब्धिाभलब्धिर्भोगलब्धिरुपभोगलब्धिर्वीर्यलब्धिश्चेति। दानान्तरायादिसर्वघातिस्पर्द्धकक्षयोपशमे देशघातिस्पर्द्धकोदयसद्भावे ताः पञ्चलब्धयो भवन्ति / अर्थात् दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य - ये पाँच लब्धियाँ, पूर्ववत् दानान्तराय, लाभान्तराय आदि के क्षयोपशम से होती हैं।