________________ तृतीय चर्चा : सम्यक् क्षायोपशमिक भाव चर्चा अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानकषायाष्टकोदयक्षयात्सदुपशमाच्च प्रत्याख्यान -कषायोदये संज्वलनकषायस्य देशघातिस्पर्द्धकोदये नोकषायनवकस्य यथा-सम्भवोदये च विरताविरतपरिणामः क्षायोपशमिकः संयमासंयम इत्याख्यायते। (सर्वार्थसिद्धि 2/5) __ अर्थात् वर्तमानकाल में सर्वघाति-स्पर्द्धकों का उदयाभावी क्षय होने से और आगामीकाल की अपेक्षा उन्हीं का सद्वस्थारूप उपशम होने से तथा देशघातिस्पर्द्धकों का उदय रहते हुए क्षायोपशमिक भाव होता है। उक्त भावों में से ज्ञानादि क्षायोपशमिक भाव, अपने-अपने आवरण और अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से होते हैं -ऐसा व्याख्यान यहाँ कर लेना चाहिए। सूत्र में आये हुए ‘सम्यक्त्व' पद से वेदक सम्यक्त्व लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि चार अनन्तानुबन्धी-कषाय, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व -इन छह प्रकृतियों के उदयाभावी क्षय और सदवस्थारूप उपशम से देशघातिस्पर्द्धक वाली सम्यक-प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थ-श्रद्धान होता है, वह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है। ___ अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण –इन बारह कषायों के उदयाभावी क्षय होने से और इन्हीं के सदवस्थारूप उपशम होने से तथा चार संज्वलन-कषायों में से किसी एक देशघाति-प्रकृति के देशघाति-स्पर्द्धकों के उदय होने पर और नौ नोकषायों का यथासम्भव उदय होने पर जो त्यागरूप परिणाम होता है, वह क्षायोपशमिक चारित्र है। ___अनन्तानुबन्धी और अप्रत्याख्यानावरण - इन आठ कषायों के उदयाभावी क्षय होने से और इन्हीं के सदवस्थारूप उपशम होने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय और संज्वलन-कषाय के देशघाति-स्पर्द्धकों के उदय होने पर तथा नौ नोकषायों का यथासम्भव उदय होने पर जो विरताविरत परिणामरूप परिणाम होता है, वह क्षायोपशमिक संयमासंयम कहलाता है। इसी सूत्र की तत्त्वार्थराजवार्तिक टीकानुसार व्याख्या निम्न प्रकार है - तत्र ज्ञानं चतुर्विधं क्षायोपशमिकमाभिनिबोधिकज्ञानं श्रुतज्ञानमवधिज्ञानं मनःपर्ययज्ञानं चेति।