________________ क्षयोपशम भाव चर्चा 13. औपशमिक एवं क्षायिकभाव, पूर्णतः निर्मल भाव/परिणाम/पर्याय है, जबकि औदयिक पूर्णतः समल/मलिन/भाव/परिणाम/पर्याय है। क्षायोपशमिकभाव, मिश्रभाव/परिणाम/पर्याय है; उसमें सर्वघाति-प्रकृतियों के अनुदय/सदवस्थारूप उपशम से निर्मलता सहित एवं देशघाति-प्रकृतियों के उदय के निमित्त से किंचित् मलिनता सहित जो एक मिश्रभाव/परिणाम |पर्याय होती है, उसकी क्षायोपशमिकभाव संज्ञा है। पारिणामिक भाव, इन चार भावों/पर्यायों से भिन्न (अताद्भाविक भिन्नता) वाला अनादि-अनन्त एकरूप द्रव्य-स्वभाव है, वह उत्पाद-व्यय रहित एक द्रव्यरूप ध्रुव शाश्वत भाव है। यही एकरूप शाश्वत वर्तता पारिणामिकभाव (शुद्ध- जीवत्वभाव) ध्येय, ज्ञेय, श्रद्धेय कहा है। 14. उक्त एक पारिणामिक (शुद्ध-जीवत्व) भाव एवं चार पर्यायभाव (औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक एवं क्षायिक) में मात्र अताद्भाविक-अन्यत्व होता है, प्रदेश-भिन्नतारूप पृथक्त्व नहीं अर्थात् द्रव्य-गुण-पर्याय - ये तीनों एक अभेद सत्तारूप ही रहते हैं। 15. औपशमिकभाव (सम्यक्त्व) के बिना मोक्षमार्ग/धर्म का प्रारम्भ नहीं होता। 16. पारिणामिकभाव, व्यक्त पर्याय की शुद्धता-अशुद्धता के व्यवहार से शून्य (रहित) होता है; अतः बन्ध-मोक्ष की कल्पना-विरहित एक सद्रूप-चिद्रूपतद्रूप भाव है। तत्त्वंसाल्लक्षणिकं, सन्मात्रंवायत:वा स्वतःसिद्धम्। तस्मादनादिनिधनं, स्वसहायं निर्विकल्पं च।। ___ (पंचाध्यायी 8) 17. एक अभेद-सत्-द्रव्य में (गुण-पर्ययवद्-द्रव्यम्) गुणों व पर्यायों (तिर्यक् प्रचय व ऊर्ध्वप्रचय) का भेद (अताद्भाविक भेद होने से) समझने के लिए ही किया जाता है। वस्तुतः द्रव्य, एक अभेद सत् है। गुणों और पर्यायों का आधार, एक द्रव्य ही है। 18. गुणस्थान, मोह+योग - निमित्तक ही होते हैं और ये ही (मोह+योग) कर्म बन्ध के कर्ता-करण हैं अर्थात् मोहोदय सहित परिणाम ही बन्ध-साधक हैं।