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कातन्त्ररूपमाला
(आदिलोपोऽन्त्यलोपच मध्यलोपस्तथैव च। विभक्तिपदवर्णात दश्यते शावत्रिक ॥१॥
अत् पञ्चम्यद्वित्वे ॥३५७ ।। एभ्यो युष्मदादिभ्यः परा अद्वित्वे वर्तमाना पञ्चम्यद् भवति । त्वत् । मत्। युवाभ्यां । आवाभ्यां । युष्मत् । अस्मत्।
तव मम ङसि ॥३५८ ।। युष्मदस्मदोः सविभक्त्योस्तव मम इत्येतौ भवतो इसि परे । तब । मम । युवयोः । आवयोः ।
सामाकम् ॥३५९ ।। युष्मदादिभ्य: पर: सागमयुक्त आम् आकम् भवति । युष्माकं । अस्माकं । त्वयि । मयि । युवयोः । आवयोः । युष्मासु । अस्मासु । एवं नीतक । त्वं युवां यूयं । त्वां युवा युष्मान् । त्वया युवाभ्यां युष्माभिः ।
श्लोकार्य-शार्ववर्म आचार्य के व्याकरण में विभक्ति पद के वर्गों में आदि का लोप, अंत का लोप और कभी मध्य का लोप देखा जाता है ॥१॥ . युष्मद् आदि से परे द्विवचन रहित पंचमी विभक्ति को 'अद्' आदेश हो जाता है ॥३५७ ।।
अत: स्वत् + अत्, मत् + अत्, रहा। उपर्युक्त श्लोक के आधार से त्वत्, मत् के त् का लोप होकर १३६वे सूत्र से 'त्व म' के अकार का लोप होकर 'त्वत् मत्' बना । ऐसे ही
युष्मद् + ध्यस्, अस्मद् + भ्यस् है।
भ्यस् को ३५७वे सूत्र से 'अत्' होकर ३५१वें सूत्र से युष्मद् के द् का लोप एवं १३६वें सूत्र से 'अ' का लोप होकर 'युष्मत्, अस्मत्' बना ।
युष्मद् + ङस्, अस्मद् + ङस् है।
डस् विभक्ति के आने पर विभक्ति सहित युष्मद्, अस्मद् को तव, मम आदेश हो जाता है ॥३५८ ॥
अत: 'तव, मम' बना।
युष्मद् + ओस्, अस्मद् + ओस है ‘युवावौ द्विवाचिषु' सूत्र से 'युव, आव' आदेश होकर "ओसि च" सूत्र से एकार होकर एवं संधि होकर 'युवयोः, आवयो:' बना ।
युष्मद् + आम्, अस्मद् + आम् युष्मद् आदि से परे आम् को सकार सहित 'आकम्' आदेश हो जाता है ॥३५९ ।। पुन: ३५१वें सूत्र से दकार का लोप होकर 'युष्माकम्, अस्माकम्' बन गया। युष्मद् + ङि, अस्मद् + डि है।
'त्वन्मदोरेकत्वे' सूत्र से 'त्वत्, मत्' होकर ३५१वें सूत्र से त्वत, मत् के अंत का लोप होकर ३५३वें सूत्र से अंत को एकार होकर संधि होकर त्वे + इ + इ = त्वयि, मयि बना ।
युष्मद् + सु, अस्मद् +सु ३५१वें सूत्र से दकार का लोप होकर ३५४वें सूत्र से आकार होकर 'युष्मासु, अस्मासु' बना।