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समास:
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समासान्तर्गतानां वा राजादीनामदन्तता ॥४५६ ।। समासान्तर्गतानां राजादीनामदन्तता अप्रत्ययो भवति । वा समुच्चये । पश्चानां गवां समाहार: पञ्चगवं । चतुर्णा पश्चा समाहार. चतुष्पथं ।
न सूत्रे क्वचित् ।।४५७ ॥ क्वचित्सूत्रे द्वन्द्वैकत्वं भवति, नपुसकलिङ्गत्व न स्यात् । विरामव्यञ्जनादौ। एवं पचिवचिसिचिरुचिमुचेश्चात् । इत्यादि ।
पुंवद्धाषितपुंस्कानूङपूरण्यादिषु स्त्रियां तुल्याधिकरणे ॥४५८ ॥12:२२ स्त्रियां वर्तमानं भाषितपुंस्क अनूङन्तं पूर्वपदभूतं पुंवद्भवति स्त्रिया वर्तमाने तुल्याधिकरणे | पूरण्यादिगणवर्जिते उत्तरपदे परे । शोभना भार्या यरस्यासौं शोभनभार्य: । एवं दीर्घजयभार्यः । इत्यादि।
मिति कि ? द्रोणीभार्यः । अनङ इति किम ? ब्रह्मवधभार्य: । अपरण्यादिष्विति कि ? कल्याणी पञ्चमी यासां रात्रीणां ताः कल्याणीपञ्चमा रात्रयः । के पूरण्यादयः ? पूरणी पञ्चमी कल्याणी मनोज्ञा सुभगा दुर्भगा स्वकान्ता कुब्जा वामना।
संज्ञापूरणीकोपधास्तु न ॥४५९॥ स्त्रियां वर्तमाना भाषितपुंस्कानूङन्ता: सज्ञापूरणीप्रत्ययान्ता: कोपधा: पूर्वपदभूताः पुंवद्रूपा न भवन्ति
समास के अन्तर्गत राजादि शब्द अकारांत. हो जाते हैं ॥४५६ ।। यहाँ सूत्र में 'वा' शब्द समुच्चय के लिये है अत: पञ्चगो से 'अ' प्रत्यय होकर अव् होकर लिग संज्ञा एवं विभक्ति आकर 'पंचगवं' बना। ऐसे ही चतुष्पथि मे "इवर्णावर्णयोलोप: स्वरे प्रत्यये ये च" सूत्र से इकार का लोप, लिंग संज्ञा होकर 'चतुयथं' बना।
किसी सूत्र में द्वंद्व में एकल होता है, किन्तु नपुंसकलिंग नही होता है ॥४५७ ।।
विराम और व्यंजन का समास करके ङि विभक्ति एकवचनान्त है। किन्तु नपुंसकलिङ्ग नहीं है यदि नपुंसकलिङ्ग होता तो वारि शब्दवत् २ का आगम होकर आदिनि हो जाता न कि आदौ ।
तुल्याधिकरण में पूरणी आदि गण को छोड़कर स्त्रीलिंग में वर्तमान अकारांत रहित माषितपुंस्क को पुंवद् हो जाता है ॥४५८ ॥
जैसे—शोभना भार्या यस्य सः शोभनभार्या बना । पुन ४३२वें सूत्र से अन्त को अकारांत होकर शोभनभार्य: बना। ऐसे ही दीर्घजंघभार्य: इत्यादि । भाषितपुस्क हो ऐसा क्यों कहा ? भाषितपुस्क नहीं हो तो ह्रस्व नहीं होगा जैसे- द्राणीभार्य: यहाँ द्रोणी शब्द भाषितपुंस्क नहीं है नित्य ही स्त्रीलिंग है।
पङ ऐसा क्यों कहा तो ब्रह्मवधभार्य: यहाँ वध शब्द ऊकारात है उसे हस्त नही हआ। पूरणी आदि गण को छोड़कर ऐसा क्यों कहा ? पूरणी आदि गण के शब्दो को भी ह्रस्व नहीं होगा। जैसे-कल्याणी पञ्चमी यासा रात्रीणां ता: कल्याणीपञ्चमा: । रात्रयः । पूरणी आदि गण में कौन-कौन है ? पूरणी, पञ्चमी, कल्याणी, मनोज्ञा, सुभगा, दुर्भगा, स्त्रकान्ता, कुजा, वामना । ये शब्द पूरणी आदि गण मे माने गये है। संज्ञा पूरणी प्रत्ययात 'क' की उपधा वाले पूर्वपदभूत पुवद् रूप नहीं होते हैं ॥४५९ ।।
स्त्रीलिंग में वर्तमान तुल्याधिकरण पद मे परणी आदि गण वर्जित उत्तर पद के होने पर सीलिंग में वर्तमान भाषित पुंस्क से अकारात रहित, सज्ञा पूरणी प्रत्ययात वाले एव 'क' की उपधा वाले शब्दों को पूर्वपद में ह्रस्व नहीं होता है । जैसे दत्ता भार्या यस्यासौ दत्ताधाय पञ्चमी भार्या यस्यासौ पचमीभार्यः,