Book Title: Katantra Roopmala
Author(s): Sharvavarma Acharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 368
________________ ३५६ कातन्त्ररूपमाला उपसर्गे दः किः ॥७६०॥ उपसर्गे उपपदे दासंज्ञकात्किर्भवति भावे । आलोपोऽसार्वधातुके इत्याकारलोप: । आदिः । आधिः । व्याधिः । सन्धिः । निधिः। कर्मण्यधिकरणे च ॥७६१ ॥ कर्मण्युपपदे दासंज्ञकात्किर्भवति अधिकरणे च । बाला धीयन्तेऽस्मित्रिति बालधिः । एवं जलधिः । वारिधि: । अब्धिः । वार्धि: । अम्भोधिः । कर्मव्यतिहारे णच खियाम्॥७६२ ।। क्रियाव्यतिहारे वर्तमानाद्धातो: भावे णच् भवति स्त्रियां । तत्र न वृध्यागम: किन्तु वृद्धिरादौ सणि इति वृद्धिः । क्रियाव्यतिहारे का आह्वाने रोदने च । पुन: पुन: व्यवक्रोशनं व्यवक्रोश: । व्यवक्रोश एवं व्यावक्रोशी । हसि विहसने । पुन: पुन: व्यवहस्यते व्यवहासः । व्यवहास एव व्यवहासी । अभिविधौ भावे इनण्॥७६३॥ अभिविधिरिति कोऽर्थः । अभिव्याप्ते: साकल्येन क्रियासंबन्ध इत्यर्थः । अभिविधौ गम्यमाने धातोरिनण् भवति भावे स्वार्थे अण् भवति । कुट कौटिल्ये । संकुटनं संकोटिनं । संकोटिनमेव सांकोटिनं वर्तते । एवं सांराविणम् । सांहासिनं वर्तते । षानुबन्धभिदादिभ्यस्त्वङ्॥७६४॥ उपसर्ग उपपद में होने पर दा संज्ञक से भाव में 'कि' प्रत्यय होता है ॥७६० ॥ 'आलोपोऽसार्वधातुके' सूत्र से आकार का लोप हो गया आ ‘दा' इ= आदि: आधि: वि आ धा इ=व्याधिः सन्धि: निधि: 1 कर्म उपपद में होने पर दा संज्ञक से अधिकरण अर्थ में 'कि' प्रत्यय होता है ।।७६१ ॥ बाला धीयते अस्मिन् इति बालधि: जलधि: वारिधि: अप् धा इ= अब्धि: वार्षिः अम्भोधि: इत्यादि। क्रिया व्यतिहार अर्थ में वर्तमान धातु से भाव में स्त्रीलिंग में 'णच्' प्रत्यय होता है ॥७६२ ॥ उसमें वृद्धि का आगम नहीं होता है किन्तु वृद्धिरादौसणे' सूत्र से वृद्धि होती है क्रु” धातु-आह्वानन करने और रोने अर्थ में है। पुनः पुनः व्यवक्रोशनं व्यवक्रोश: । व्यवक्रोश एवं व्यावक्रोशी । हस हंसना पुनः पुन: व्यवहस्यते व्यवहास: व्यवहास एव व्यावहासी बना है। अभिविधि अर्थ में धातु से भाव में इनण् और स्वार्थ में अण् प्रत्यय होता है ॥७६३ ॥ अभिविधि किसे कहते हैं ? अभिव्याप्ति को कहते हैं अभिव्याप्ति से संपूर्णतया क्रिया का संबंध होना । कुटकौटिल्ये संकुटनं---संकोटिनं, संकोटिनमेव-सांकोटिनं संराव—साराविणं संहास से-साहासिन। षानुबंध से और भिदादि से भाव में स्त्रीलिंग में 'अङ्' प्रत्यय होता है ॥७६४ ॥

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