Book Title: Katantra Roopmala
Author(s): Sharvavarma Acharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 369
________________ कृदन्त: ३५७ षानुबन्धेभ्योभिदादिभ्यश्च भावे अझ् भवति स्त्रियां। कृप कृपायां। कृप सामथ्ये । कृपा । व्यथदुःखभयचलनयोः । व्यथा । व्यध ताडने व्यधा । छिदिर् छिदा । गुहू संवरणे । गुहा । स्मृह ईप्सायां स्पहाः। आतश्चोपसर्गे ॥७६५॥ उपसर्गे उपपदे आकारान्ताद्धातोरङ्भवति स्त्रियां । सन्ध्या । संस्था । उपधा । अन्तर्धा । रोगाख्यायां खुत्र ॥७६६ ॥ रोगाख्यायां धातोर्वञ् भवति स्त्रियां । प्रवाहिका। प्रछर्दिका । संज्ञायां च ॥७६७ ॥ संज्ञायाञ्च धातोर्दुञ् भवति स्त्रियां । भञ्जो आमर्दने । उद्दालपुष्पाणि भज्यन्ते यस्यां क्रीडायां सा उद्दालपुष्पभञ्जिका। एवं शालपुष्पप्रवाहिका।। प्रश्नाख्यानयोरिज्युञ् च वा॥७६८ ॥ प्रश्ने आख्याने अवगम्यमाने धातोरिन् भवति वुश्च भवति । वाग्रहणात् यथाप्राप्तं च । त्वं का कारिमकाषीं: कां कारिकां का क्रियां का कृत्यां । अहं सर्वां कारिमकार्ष सर्वा कारिका सर्वां क्रियां सर्वा कृत्यां। एवं त्वं कां कारणामकार्षीः । त्वं का पाचिकामपाक्षी; । कां पक्ति । नव्यन्याक्रोशे ॥७६९॥ नयुपपदे आक्रोशे गम्यमाने धातोरनिर्भवति। अकरणिस्ते वृषल भूयात् । जीव प्राणधारणे। एवमजीवनिः । जन जनने अजननी: अप्राणनीः । कृप—कृपा और सामर्थ्य में है कृप् अ 'स्त्रियामादा' से 'आ' प्रत्यय होकर कृपा, व्यथा, व्यधा, विदा भिदा, गुहा ! स्मृह—स्पृहा। उपसर्ग उपपद में रहने पर आकारांत धातु से स्त्रीलिंगा में 'अङ् होता है ॥७६५ ॥ संध्या, संस्था, अंतर्धा, उपधा आदि । रोग वाचक धातु से स्त्रीलिंग में वुजू होता है ॥७६६ ॥ प्रवाहिका, प्रछर्दिका। संज्ञा अर्थ में धातु से स्त्रीलिंग में वुञ् प्रत्यय होता है ॥७६७ ।। बुञ् को अक होकर "उद्दालपुष्प तोड़े जाते हैं जिस क्रीड़ा में वह उद्दालपुष्य भञ्जिका है" भ-आमर्दन करना । शालपुष्प प्रवाहिका । प्रश्न और आख्यान अर्थ में धातु से इन और उञ् प्रत्यय होते हैं १७६८ ॥ वा ग्रहण करने से यथाप्राप्त होते हैं । कृ से इञ् होकर कारि बन कर रूप चलेंगे वुञ् को अक होकर कारिका बनेंगे। त्वं कां कारिमकार्षी: कां कारिका का क्रियां का कृत्यां । तुमने क्या कार्य किया, किस कार्य को, क्रिया को, किस कृत्य को किया । ऐसे मैने सभी कार्य किये इत्यादि । नब् उपपद में होने पर आक्रोश अर्थ में धातु से 'अनि' प्रत्यय होता है ॥७६९ ॥ अकरणि: जीव धातु से--अजीवनि: अजननि: अप्राणनिः ।

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