Book Title: Katantra Roopmala
Author(s): Sharvavarma Acharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 387
________________ तुष तुष्टों पुष पुष्टौ शुष शोषणे असु क्षेपणे तृप प्रीणने पद गौ षुञ् अभिषवे अशूङ् व्याप्तों चिञ् चयने श्रु श्रवणे तुद् व्यथने मृङ् प्राणत्यागे मुच्लृ मोक्षणे लुप्लुच् छेदने विद्व् लाभे लिप उपदेहे पिचिर क्षरणे कॄ विक्षेपे गृ निगरणे व्यच् व्याजीकरणे प्रच्छ जीप्सायां भ्रस्ज् पाके स्पृश संस्पर्शने मृश आमर्शने रूधिर, आवरणे भुज पालनाभ्यवहारयोः भुज अशन अर्थ में युजिर् योगे परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी स्वादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी परिशिष्ट उभयपदी परस्मैपदी तुदादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी उभयपदी उभयपदी उभयपदी उभयपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी रुधादिगण की धातुयें उभयपदी उभयपदी आत्मनेपदी उभयपदी तुष्यति पुष्यति शुष्यति अस्यति तृप्यति पद्यते सुनोति अश्नुते चिनोति, चिनुते शृणोति तुदति म्रियते मुञ्चति, मुञ्चते लुभ्यति, लुभ्यते, लुम्पति लुम्पते विन्दति, विन्दते लिम्पति लिम्पते सिञ्चति सिचते किरति गिरति विचति पृच्छति भृञ्जति भृञ्जते स्पृशति भृशति रुणद्धि रुन्थे भुनक्ति, मुङ्क्ते भुङ्क्ते युनक्ति, युङ्क्ते ३७५

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