Book Title: Katantra Roopmala
Author(s): Sharvavarma Acharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
________________
:
घट चलने
छद षद संवरणे तुल उन्माने
मूल रोहणे
ज्ञ मानुबंधे
चूर्ण संकोचने
पूज पूजायां लुण्ट स्तेये
मडि भूषायां हर्षे च तत्र कुटुंब धारणे
वञ्च प्रलंभने
चर्च अध्ययने
धुषिर् शब्दे भूष अलंकारे
मुच् प्रमोचने
पूरी आप्यायने
कल गतौ संख्याने च
मह पूजायां
स्पृह ईप्सायां गवेष मार्गणे
मृग अन्वेषणे
स्थूल परिबृंहणे अर्थ उपयाचायां
मूत्र प्रस्रवणे
पार तीर समाप्ती
चित्र विचित्रीकरणे
छिद्र कर्णभेदे
अन्य दृष्ट्युपसंहारे दण्ड निपातने
सुख दुःख तत्क्रिययोः
रस आस्वादन स्नेहनयोः
वर्ण वर्णक्रियाविस्तारगुणवचने
पर्णहरितभावे
परिशिष्ट
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
एण्टी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
आत्मनेपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
परस्मैपदी
घटयति
छादयति
तोलयति
मूलयति
ज्ञपयति
चूर्णयति
पूजयति
यति
मण्डयति
तन्त्रयति
वञ्चयति
चर्चयति
घोषयति
भूषयति
मोचयति
पूरयति
कलयति
महयति
स्पृहयति
गवेषयति
मृगयते
स्थूलयति
अर्थयति
मूत्रयति
पारयति तीरयति
चित्रयति
छिद्रयति
अंधयति
दण्डयति
सुखयति, दुःखयति
रसयति
वर्णयति
पर्णयति
३७७
Page Navigation
1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420