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कातन्त्ररूपमाला
सेट्स वा ॥२७७॥ नाप्यन्ताद्धातो: परस्य सेटामाशीरद्यतनापरोक्षाणां धकारस्य ढो भवति वा । असविढ्वं असविध्वं ।
नहेर्द्धः ॥२७८।। नहेर्हकारस्य धो भवति धुयन्ते च । अनासीत् अनाद्धां अनात्सुः । अनात्सी: अनाद्धं अनाद्ध । अनात्सं अनात्स्व अनात्स्म। अनद्ध अनत्सातां अनत्सत । अनदा: अनत्साथां अनवं । अनत्सि अनत्स्वहि अनत्स्महि । इति दिवादिः ।
स्तुसुधअभ्यः परस्में ॥२७९॥ स्तुसुधूभ्य इडागमो भवति परस्मैपदे सिंचि परे। अस्तावीत् अस्ताविष्टां अस्ताविषुः । धूब् कम्पने । अधावीत् । उदनुबन्धत्वाद्विकल्पेनेट् । आशिष्ट आशिषातां आशिषत । आष्ट आक्षातां आक्षत । अचैषीत् अवैष्टां अचैषुः । अचेष्ट अचेषातां अचेषत। इति स्वादिः ।
अदितुदिनुदिक्षुदिस्विद्यतिविधतिविन्दतिविनत्तिछिदिभिदिहदिशदिसदिपदिस्कन्दिखिदेर्दात् ।।२८० ॥ एभ्य: षोडशभ्य: परमसार्वधातुकमनिड् भवति ।
व्यञ्जनान्तानामनिटाम् ।।२८१॥
नाम्यंत धातु से आशी: अद्यतनी परोक्षा में इट् सहित होने पर धकार को ढकार विकल्प से होता है ॥२७७ ॥ असविवं, असविध्वं । अट नह सिच् 'ई' दि।
नह के हकार को धुट् अन्त में धकार हो जाता है ॥२७८ ॥ 'अघोघे प्रथम:' से प्रथम अक्षर होकर उपधा को दीर्घ होकर अनात्सीत् अनाद्धां अनात्सुः । आत्मनेपद में--अनद्ध अनत्साता अनत्सत ।
इस प्रकार से अद्यतनी में दिवादिगण समाप्त हुआ है।
अद्यतनी में स्वादिगण प्रारम्भ होता है। परस्मैपद में सिच् के आने पर स्तु, सु और धू धातु से इट् का आगम होता है ।।२७९ ।।
अस्तावीत् अस्ताविष्टां । धूञ्-कंपित होना । अघावीत् । उदनुबंध में विकल्प से इट् होता है। अशूच्याप्तौ आशिष्ट आशिषातां । अनिट् पक्ष में आष्ट आक्षातां आक्षत । चिञ्-चयन अर्थ में है। अवैषीत् अचेष्टां अचैषुः । अचेष्ट अचेपातां ।
इस प्रकार से अद्यतनी में स्वादि गण समाप्त हुआ। अद्यतनी में तुदादिगण प्रारंभ होता है।
अद् तुद् नुद् क्षुद् स्विद् विद् विन्द विद् छिद् भिद् हद् शद् सद् पद् स्कंद और खिद् इन सोलह दकारांत धातु से असार्वधातुक में इट् नहीं होता है ।।२८० ॥ परस्मैपद में सिच् के आने पर व्यंजनान्त अनिट् धातु की वृद्धि हो जाती है ॥२८१ ॥