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तिङन्त:
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परोक्षायामभ्यासस्योभयेषाम्॥३२२ ॥ उभयेषां ग्रहादिस्वप्यादीनामभ्यासस्यान्तस्थायाः सम्प्रसारणं भवति परोक्षायां । गुण्योंयं योगः। ग्रही उपादाने । साझा पाहिज्याासादिना संभार . नगृहं गृहः .
आकारादट औ॥३२३ ॥ आकारात्पररयाट् और्भवति।
सन्थ्य क्षरे च ॥३२४ ।। धातोराकारस्य लोपो भवति सन्ध्यक्षरे च परे । ज्या वयोहानौ । जिज्यौ ।
य इवर्णस्य ॥३२५॥ । असंयोगा पूर्वस्यानेकाक्षरस्य इवर्णस्य यो भवति । इति इवर्णस्य यकार: । जिज्यतुः जिज्युः।
इटि च ।।३२६ ॥ धातोराकारस्य लोपो भवति इटि परे । जिज्यिथ जिज्यथुः जिज्य । जिज्यौ जिज्यिव जिज्यिम । वेज तन्तुसन्ताने।
वेञश्च वयिः ।।३२७॥ वेओ वा वयिर्भवति परोक्षायाम्। तत्र च संप्रसारणं भवति । उवाय ऊयतुः ऊयुः । उवयिथ ऊयथु: ऊय । उवाय उवय ऊयिव ऊयिम । पक्षे सन्ध्यक्षरान्तानामाकारों विकरणे इत्याकारादेश: ।
एवं उपधा के अकार को 'ए' होकर अभ्यास का लोप होने से तेरतु: तेरु: । फल-निष्पन्न होना, पफाल फेलत: फेल: । भज, श्रीड-सेवा करना । जभाज भेजतः भेज: । त्रपष-लज्जा करना पे पिरे । श्रन्थ ग्रन्थ-संदर्भ । शश्रन्थ श्रेथतुः श्रेथुः । अनुषंग रहित तृ आदि धातु के सहचारी होने से अभ्यास का लोप और अकार को एकार नहीं हुआ। शश्रन्थिथ । जग्रन्थ ग्रेथतुः ग्रेथुः । जगन्थिय । दम्भू-दम्भ करना । ददम्भ देभतुः देभुः । ददम्भिथ । अन्यत्र अनुषंग लोप नहीं होता है ऐसा क्यों कहा? तो ननन्द ननन्दतु: ननन्दुः में अनुषंग लोप नहीं हुआ है । सस्रसे बभ्रंसे दध्वंसे।
ग्रहादि और स्वप्यादि धातुओं में अभ्यास के अंतस्थ को परोक्षा में संप्रसारण हो जाता है ॥३२२ ॥
गुणी विभक्ति के लिये यह योग—सूत्र है इससे यह अर्थ हुआ कि अगुणी में दोनों को संप्रसारण कर दो। ग्रह धातु से--जग्राह । “अहिज्या" इत्यादि सूत्र से संप्रसारण होकर जगृहतुः जगृहु: ।
आकार के परे अट् को 'औ' हो जाता है ॥३२३ ॥ संध्यक्षर के आने पर धातु के आकार का लोप हो जाता है ॥३२४ ॥ ज्या-जिज्यो । पूर्व अभ्यास के जी को हस्त्र होकर 'जि' बना है।
__ असंयोग अपूर्व अनेकाक्षर के इवर्ण को य हो जाता है ॥३२५ ॥ इवर्ण को यकार होकर जिजी अतुस् = जिज्यतुः जिज्युः।
इद् के आने पर धातु के आकार का लोप हो जाता है ॥३२६ ॥ जिज्यिथ जिज्यधुः जिज्य । बेञ्-कपड़ा बुनना ।।
परीक्षा में वेञ् को वय् आदेश विकल्प से होता है ॥३२७ ॥ और संप्रसारण होकर उवाय ऊयतः ऊयः । उवयिथ। पक्ष में...'संध्यक्षरान्तानामाकारो विकरणे' सूत्र से आकार हो जाने से 'वा' बन गया । वा---गति और बंधन करना ।