Book Title: Katantra Roopmala
Author(s): Sharvavarma Acharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 344
________________ कातन्त्ररूपमाला ललाटे तपः ॥६२३॥ ललाटे उपपदे तपते: खश् भवति । ललाटंतपः । मितनखपरिमाणेषु पचः ।।६२४॥ एषु कर्मसूपपदेषु पच: खश् भवति । मितम्पचा ब्राह्मणी । नखंपचा यवागू । प्रस्थंपचा द्रोणंपचा स्थाली। कूल उगुजोहोः ।।६२५ ।। कूले उपपदे उगुजोद्वहो: खश् भवति । रुजो भंगे। कूलमुद्रुजा नदी । कूलमुद्रुहः समुद्रः । वहलिहाभंलिहपरन्तपेरंमदाश्च ॥६२६ ॥ एते खशन्ता निपात्यन्ते । वहलिहा गौ: । अभलिहो वायुः । परंतपः खलः । इरंमदा सीधुः । चकारात् वातमजन्तीति वातमजा: । श्राद्धं जहातीति श्राद्धजहा माषा:।। वदेः खः प्रियवशयोः ॥२७॥ अनयोरुपपदयोर्वदेः खो भवति । प्रियंवदः । वशंवदः । सर्वकलाप्रकरीषेषु कषः ।।६२८॥ एधूपपदेषु कषते; खो भवति । कष सिषेति दण्डकधातुः । सर्वंकषः खल: । कूलंकषा नदी । अभ्रंकषो गिरिः । करीषंकषा वात्या। भयातिमेघेषु कृञः ।।६२९ ॥ ललाट उपपद में रहने पर तप् धातु से खश् प्रत्यय होता है ॥६२३ ॥ ललाटं तपतीति = ललाटंतपः ।। मित नख और परिमाण के उपपद में रहने पर पच् धातु से खश प्रत्यय होता है ॥६२४॥ __मितपचा—ब्राह्मणी । नखंपचा-यवाग, प्रस्थंपचा–स्थाली द्रोणंपचा खारी इत्यादि । कूल उपपद में रहने पर उत् पूर्वक रुज् वह् धातु से खश् प्रत्यय होता है ॥६२५ ॥ रुज्-भंग करना, कूलमुद्रुजा-नदी । कूलमुद्वहः समुद्रः।। वहंलिह अभंलिह परन्तप इरम्मद ये खश् प्रत्ययान्त शब्द निपात से सिद्ध हुये हैं ॥६२६ ॥ बहलिहा--गाय, अभ्रंलिह:-वायुः, परंतप:-दुष्ट, इरंमदा-सुरा । चकार से वातं अजंति-वातमजा:, श्राद्धं जहातीति श्राद्धजहा:-उड़द ।। प्रिय और वश उपपद में रहने पर वद धातु से 'ख' प्रत्यय होता है ॥६२७ ॥ प्रियंवदः वशंवदः । सर्व कूल अभ्र और करीष उपपद में आने पर कष धातु से 'ख' प्रत्यय होता है ॥६२८ ।। कष सिए ये दण्डक धातु हैं। सर्व कषति-सर्वकष:-दुष्ट, कूलंकषा-नदी, अभ्रंकषो-गिरिः, करीषंकषा-वात्या = आंधी। भय, ऋति और मेघ से परे कृ धातु से 'ख' प्रत्यय होता है ॥६२९ ॥

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