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कृदन्तः
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वा स्वरे ॥५६६॥ गिरते रेफस्य का लकारो भवति स्वरे परे । उद्गिरः उगिल: प्रज्ञः ।
उपसर्गे चातो दुः॥५६७॥ उपसर्गे तु आकारान्ताड्डो भवति । सुग्ल: । सुम्ल: । प्रस्थः । प्रह्वः । छो छेदने । प्रच्छः ।
घेदशिपाघ्राध्मः शः ॥५६८॥ उपसर्गे उपपदे एभ्य: शो भवति । उद्धय: । उत्पश्य: । उत्पिब: । उज्जिनः । उद्धमः ।
साहिसातिवेद्यदेजिचेतिधारिपारिलिम्पिविदां त्वनुपसर्गे।।५६९॥ एषामनुपसर्गे शो भवति । साहयतीति साहयः । एवं सातयः । वेदयः । एज़ कम्पने ।
उदेजयः । चिती संज्ञाने। चेतयः । घृङ् धारणे धारय: । पार तीर कर्मसमाप्तौ । पारय: । लिम्प: । विन्दः ।
वा ज्वलादिदुनीभुवो णः ।।५७०।। ज्वलादिभ्यो दुनोते: नयनेर्भवतेश अनपसर्गे गो भवति ता गरे अन ! ज्वल दीप्तौ ! ज्वलः ज्वाल: । चल कम्पने। चल: चाल: । कसपर्यन्तो ज्वलादिः । टुदु उपतापे । दव: दाव: । नय: नाय: । भव: भावः ।
स्वर प्रत्यय के आने पर गृ के रकार को विकल्प से लकार हो जाता है ॥५६६ ॥ उद्गिरः, उद्गिल: । ज्ञा कानुबन्धं से अन्तिम स्वर का लोप होकर प्रज्ञ: बना।
उपसर्ग सहित आकारान्त धातु से 'ई' प्रत्यय होता है ५६७ ॥ सु उपसर्ग पूर्वक ग्ला म्ला हैं 'डानुबन्धेऽन्त्यस्वरादेलोप:' ५१० सूत्र से डानुबन्ध में अन्त्य स्वर का लोप होकर सुग्ल: सुम्ल; सुस्थ: प्रस्थः णा से प्रह्वः बना। उपसर्ग उपपद सहित धेट दृश् पा घा और ध्या धातु से 'श' प्रत्यय होता है ॥५६८ ॥
शित् होने से पश्य पिब आदि आदेश होते हैं उत् धे अ= उद्धयः । उत्पश्य: उत्पिब: उज्जिघ: उद्धम: इनमें 'दृशे: पश्य:' ६९, 'प: पिब' ६३, 'घो जिघ्रः ६४, ध्मो धम:' ६५ इन सूत्रों से क्रम से दृश् को पश्य, पा को पिब, घा को जिघ्र और ध्मा को धम आदेश होता है।
साहि साति वेदि उत्पूर्वक एज धृङ् पार लिप विद धातु से उपसर्ग के अभाव में 'श' प्रत्यय होता है ॥५६९॥
शानुबन्ध से सार्वधातुकवत् कार्य होता है । साहयतीति साह्यः चुरादिगण से इन् होकर अन् होकर बना है। ऐसे ही सातय: वेदय: बने हैं। एजु-कम्पना उत्पूर्वक उद्वेजय: चिती-समझना चेतय: चुरादिगण से बना है। धृड्-धारण करना धारय: पार तीर-कार्य समाप्त होना पारय: तारयः । लिम्पः विन्दः इन दो में तुदादि गण में 'मुचादेरागमो नकार; स्वरादनि विकरणे' १९७ सूत्र से नकार का आगम होकर अन् विकरण होकर रूप बना है।
ज्वलादि से दु, नी, भू धातु से विकल्प से अण् प्रत्यय होता है ॥५७० ॥
इन धातु से उपसर्ग रहित में अण् या अन् प्रत्यय होता है । ज्वल-दीप्त होना, ज्वल: ज्वाल: चल–कम्पना चल; चाल. कस पर्यन्त ज्वलादि धातु हैं । टुदु-उपताप देना दव: दाव:, नय: नाय:, भव:
भावः।