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कातन्त्ररूपमाला
अन्ति इति प्रथमपुरुषः । सि थस् थ इति मध्यमपुरुषः । मि वस् मस् इत्युत्तमपुरुषः । ते आते अन्ते इति प्रथमपुरुषः । से आये ध्वे इति मध्यमपुरुषः । ए वहे महे इत्युत्तमपुरुषः । एवं सर्वविभक्तिषु । एता विभक्तयो धातोर्योज्यन्ते । को धातुः ?
क्रियाभावो धातुः । १६ ॥
यः शब्दः क्रियां भावयति संपादयति स धातुसंज्ञो भवति । इति भ्वादीनां धातुसंज्ञायां । भू सत्तायां । भू इति स्थिते
।
प्रत्ययः परः ॥ १७ ॥
प्रतीयते अनेनार्थः स प्रत्ययः । विकसितार्थः इत्यर्थः । प्रकृतेः परः प्रत्ययो भवति । इति सर्वत्यादिप्रसङ्गः ।
काले ॥ १८ ॥
वर्त्तमानातीतभविष्यल्लक्षणः कालः । काल इत्यधिकृतं भवति ।
सम्प्रति वर्तमाना ॥ १९ ॥
प्रारब्धापरिसमाप्तक्रियालक्षणः सम्प्रतीत्युच्यते । सम्प्रतिकाले वर्तमाना विभक्तिर्भवति । तत्रापि
युगपदष्टादशंवचनप्राप्त—
शेषात्कर्त्तरि परस्मैपदम् ॥ २० ॥
इसी प्रकार से सभी विभक्तियों में समझ लेना चाहिये ।
ये सभी विभक्तियां धातु में लगाई जाती हैं। धातु किसे कहते हैं ? क्रिया भाव को धातु कहते हैं ॥ १६ ॥
जो शब्द क्रिया को भावित (क्रिया का वाचक या बोध कराने वाला) करता है संपादित करता है वह धातुसंज्ञक है। इस प्रकार से भू आदि शब्दों की धातु संज्ञा हो गई। भू सत्ता अर्थ में है— सत्ता का अर्थ है व्यवहार द्वारा भवन क्रिया- 'भू' धातु स्थित है।
धातु से परे प्रत्यय होते हैं ॥ १७ ॥
जिससे अर्थ प्रतीति में आता है उसे प्रत्यय कहते हैं। अर्थात् जो अर्थ को विकसित करे वह प्रत्यय है। प्रकृति से परे प्रत्यय होता है। इस नियम से सभी ति, तस् आदि विभक्तियाँ एक साथ आ गई ।
काल अर्थ में विभक्तियाँ होती हैं ॥ १८ ॥
काल के तीन भेद हैं- वर्तमान, भूत और भविष्यत् । 'काले' इस सूत्र में यहाँ काल का प्रकरण अधिकार में है।
संप्रति अर्थ में 'वर्तमाना' विभक्ति होती है ॥ १९ ॥
जिसका प्रारंभ हो गया है और समाप्ति नहीं हुई है उस क्रिया का जो लक्षण है उस काल को 'संप्रति' कहते हैं। यही वर्तमान काल हैं। संप्रतिकाल के अर्थ में 'वर्तमाना' विभक्ति होती है। इस वर्तमाना में भी एक साथ अठारह विभक्तियाँ आ गईं। तत्र-
शेष से कर्ता में परस्मैपद होता है ॥ २० ॥