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कातन्त्ररूपमाला
नदाद्यञ्च् वाह् व्यंसन्तृसखिनान्तेभ्य ई॥३७२ ॥ स्त्रियां वर्तमानेभ्यो नदादि अञ्च वाह् उ इ, अंस् अन्त ऋ सखि नान्तेभ्य ई प्रत्ययो भवति ।
ईकारे स्त्रीकृतेऽलोप्यः ॥३७३ ॥ स्त्रियां वर्तमाने ईप्रत्यये परे पूर्वोऽकारो लोप्यो भवति । नदी मही भषी प्लवी कुमारी कित्ररी किशोरी प्रभतयः। अन। प्राची प्रतीची समीची उदीची तिरवीत्यादि । वाह । अनडडी (वा स्वीकारे) अनडवाही प्रष्टौही इत्यादि । उ । तन्वी । उवर्वी पृथ्वी । पदवी । इ–दाक्षी। देवदत्ती। धूली । अस् । श्रेयन्स्-श्रेयसी विदुषी प्रेयसी । अन्त्
तदभादिभ्य ईकारे ||३७४ ।। तुदादिभ्यो भादिभ्यश्च परो अन्तिरनकारको वा भवति ईप्रत्यये परे । तुदती तुदन्ती स्त्री । भाती भान्ती स्त्री।
स्यात् ।।३७५ ॥ स्यात्परोऽन्तिरनकारको वा भापति ईलाये परे । भविपी ममिती :
नयनन्भ्यां ॥३७६ ।।
यथा-'सर्वा' शब्द है स्त्रीलिंग का आकार प्रत्यय है अतः क प्रत्यय करने पर सर्वका पुन: इस सूत्र से पूर्व के 'अ' को इकार होकर 'सर्विका' बना । वैसे ही मूषिका, कारिका आदि सभी बन जायेंगे । __स्त्रीलिंग में वर्तमान नदादि अञ्च् वाह, उ, इ. अंस, अंत, ऋ सखि और नकारांत शब्दों से परे 'ई' प्रत्यय हो जाता है ॥३७२ ॥
अत: 'नद' शब्द है स्त्रीलिंग में 'ई' प्रत्यय हुआ पुन:स्त्रीलिंग में 'ई' प्रत्यय के होने पर पूर्व के अकार का लोप हो जाता है ॥३७३ ।।। नद के अकार का लोप होकर 'नदी' बना, ऐसे ही कुमार के 'अ' का लोप होकर 'कुमारी' बना ।
अञ्च धातु से बने हुए शब्दों के रूप—प्राञ्च में 'ई' प्रत्यय होकर अनुषंग का लोप होकर अञ्जेरलोष: पूर्वपदस्य दीर्घ: इस सूत्र से दीर्घ होकर प्राची बना। ऐसे ही प्रतीची, उदीची, तिश्ची बना।
वाह–अन्डुही-अनड्वाही ३४०वें सूत्र से विकल्प से वा को उ हुआ है। अत: बना । प्रष्ठौही । उकारांत शब्दों में-तनु उरु से तन्वी, उर्वी बना। पृथु से पृथ्वी, पटु से पदवी आदि। इकारान्त शब्दों में दाक्षि से दाक्षी दैवदत्ति से दैवदत्ती बना । अन्स्–श्रेयसी, विदुषी, प्रेयसी बना। अन्त् से
ईकारांत स्त्री प्रत्यय के आने पर तुदादि और भादि से परे अंत के नकार का लोप विकल्प से होता है ॥३७४ ॥
तुदती, तुदन्ती, भाती, भान्ती बना। 'स्य' से परे अंत में नकार का लोप विकल्प से होता है। ई प्रत्यय के आने पर ॥३७५ ॥
भविष्यती, भविष्यन्ती बना।।
यन् अन् विकरण से परे स्त्रीलिंग ईकार के आने पर अन्त में नकार का लोप नहीं होता है ॥३७६ ॥