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कारकाणि
सर्वोभयाभिपरिभिस्तसन्तैः ॥२८४ ॥ तसन्तैः सर्वादिभियोगे लिङ्गमाद् द्वितीया भवति । सर्वतो ग्राम वनानि । उभयतो ग्रामं क्रमुकवनानि । अभितो ग्रामं पत्रवनानि । परितो ग्रामं रंभावनानि ।
कर्मप्रवचनीयैश्च ॥३८५॥ कर्मप्रवचनीयैोंगे लिङ्गाद् द्वितीया भवति । के कर्मप्रवचनीया: ?
लक्षणवीत्सेप्थंभूतेऽभिर्भागे च परिप्रती । अनुरेषु सहार्थे च होने चोपच कथ्यते ॥१॥
दक्षिणेन नदी नदी के निकटवर्ती दक्षिण दिशा में। पश्चिमेन केदारम्-खेत के निकटवर्ती पश्चिम दिशा में । इत्यादि।
चकार से ऐसा समझना कि निकषा, समया, हा, धिक् अंतरा, अंतरेण इनसे संयुक्त लिंग से भी द्वितीया विभक्ति होती है । यथा---
निकषा ग्राम-ग्राम के निकट । समया वन-वन के पास। हा देवदत्तं-हाय ! देवदत्त को। धिक् यज्ञदत्तं यज्ञदत्त को धिक्कार हो। अंतरा गार्हपत्यमाहवनीयं च वेदि:-गार्हपत्य अग्नि और आहवनीय अग्नि के बीच में वेदी है। अंतरेण पुरुषाकारं न किश्चिद् लभते-पुरुषार्थ के बिना कुछ भी नहीं मिलता है।
तस् प्रत्यय जिसके अन्त में है ऐसे सर्व, उभय, अभि और परि के योग में लिंग से द्वितीया होती है ॥३८४ ॥
जैसे-सबतो ग्रामं वनानि -गाँव के चारों तरफ वन है। उभयतो ग्राम क्रमकवनानि--गाँव के दोनों तरफ सुपारी के वन हैं। अभितो ग्राम पत्रवनानि-गाँव के चारों तरफ पत्ते के वन हैं। परितो ग्राम र भावनानि-गाँव के सब तरफ केले के वन हैं। कर्मप्रवचनीय अर्थ के योग में द्वितीया होती है ॥३८५ ॥ कर्म प्रवचनीय कौन-कौन हैं ?
श्लोकार्थ-लक्षण, वीप्सा और इत्थंभूत अर्थ में 'अभि' शब्द कर्मप्रवचनीय है। भाग अर्थ में परि और प्रति शब्द कर्म-प्रवचनीय हैं । एवं पूर्वोक्त अर्थ में भी परि प्रति शब्द कर्मप्रवचनीय हैं 1 उपर्युक्त अर्थ में और सह अर्थ में अनुशब्द कर्मप्रवचनीय है। हीन अर्थ में उप शब्द और अनु शब्द कर्म प्रवचनीय होता है ॥१॥ ___ - लक्षण अर्थ में, वीप्सा अर्थ में, इत्थंभूत अर्थ में 'अभि' शब्द कर्मप्रवचनीय है । भाग अर्थ में परि और प्रति शब्द कर्म
द कर्मप्रवचनीय है। च शब्द से ऐसा समझना कि लक्षण वीप्सा और इत्थंभत अर्थ में भी 'परि प्रति' शब्द कर्मप्रवचनीय होते हैं । अनु शब्द इन पूर्वोक्त अर्थों में कर्मप्रवचनीय होता है। और सह अर्थ में भी 'अनु' शब्द कर्मप्रवचनीय होता है । यहाँ च शब्द समुच्चय के लिये है। हीन अर्थ में 'उप' शब्द कर्म प्रवचनीय होता है । और चकार से हीन अर्थ में 'अनु' शब्द भी कर्म प्रवचनीय होता है ।
१. कर्मक्रियां प्रोक्तवन्तः कर्मकारकमभिधीयभाना इत्यर्थः ।