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स्त्रीप्रत्ययाः
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यन् अन् विकरणाभ्यां परोऽन्तिरनकारको न भवति ईकारे परे । दीव्यन्ती सीव्यन्ती पचन्ती गच्छन्ती स्त्री इत्यादि । न यनन्भ्यामिति किं ? सुन्वती तन्वती क्रीणती सती आयुष्मती धनवती इत्यादि । ऋ। कत्रों ही भर्ती क्रोष्ट्री इत्यादि । सखि । सखी 1 इवर्णावर्णयोर्लोपः ।
नान्तात् स्वीकारे नित्यमवमसंयोगादनोऽलोपोऽलुप्तवच्च पूर्वविधौ ॥३७७ । . __ अवमसंयोगादनोऽलोपो नित्यं भवति स्वीकारे परे । राज्ञी दण्डिनी गोमिनी तपस्विनी यशस्विनी ।
वरुणेन्द्रमृडभवशर्वरुद्रादान् ।।३७८ ।। एभ्य: परो आन् प्रत्ययो भवति । तेभ्यश्च ई प्रत्यय: । वरुणानी शर्वाणी मृडानी इन्द्राणी भवानी रुद्राणी ।
नान्तसंख्यास्वस्त्रादिभ्यो न॥३७९ ।। नान्तेभ्य: संख्यादिभ्यः स्वस्रादिभ्यश्च ईप्रत्ययो न भवति । पञ्चदश । तिस्रः । चतस्त्र: । आदि शब्दात् सीमा दामा । बहवो राजानो यस्यां पुर्यां सा बहुराजा। स्वसा माता दुहितेत्यादि ।
इति प्रत्ययान्ताः
अत: दोव्यन्त का दीव्यन्ती, पचन्त का पचन्ती बना।
प्रश्न-यन्, अन् विकरण के आने पर 'न' का लोप नहीं होता ऐसा क्यों कहा ? तो सुन्वती, क्रीणन्ती सन्त-सती आदि।
धनवन्त्-धनवती बनता है। इसकी सिद्धि के लिये ऋकारान्त-कर्तृ-कत्रों, ही, भीं बना । सखि -सखी बना । नकारांत में-दण्डिन् तपस्विन्–दण्डिनी, तपस्विनी बना । राजन् + ई. स्त्रीलिंग में--
नकारांत से स्त्रीलिंग में प्रत्यय करने पर 'व म', का संयोग न होने से अन् के 'अ' का लोप हो जाता है ॥३७७ ॥
अतः राजन् + ई-राज्ञी बना।।
वरुण, इन्द्र, मृड भव, शर्व, रुद्र शब्दों से ई प्रत्यय के आने पर आन् का आगम हो जाता है ॥३७८ ॥
अत: वरुणानी, इन्द्राणी, शर्वाणी आदि बना ।
नकारांत संख्यावाची शब्द और स्वस आदि से स्त्रीलिंग में 'ई' प्रत्यय नहीं होता है ॥३७९ ॥
पंच, दश, तिस्त्र:, चतस्रः आदि बने ।
आदि शब्द से सीमन् दामन है तो सीमा, दामा बना। ___ बहुत राजा है जिस पुरी में उसे कहते हैं बहुराजा नगरी । ऐसे ही स्वसा, माता दुहिता आदि शब्दों में स्त्रीलिंग प्रत्यय नहीं होते हैं।
इस प्रकार से स्त्रीलिंग प्रत्यय प्रकरण समाप्त हुआ।
१.स्वीकारे नित्यं ॥३८३ ॥ अवमसंयोगादनोऽलोपो नित्यं भवति स्वीकारे परे स चालुप्तवद्भवति पूर्वस्थवर्णस्य विधौ कर्तव्ये। राज्ञी । इति समीचीन दश्यते ।