Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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३३३
३६८
विषय
पृष्ठ | विषय जघन्य अनुभागस्थान अनन्तगुण
सूक्ष्म जीवके जघन्य स्थानके परमाणुओं । वृद्धिरूप है इसकी सिद्धि
____ की छह अधिकारोंके द्वारा प्ररूपणा ३५२ काण्डकका प्रमाण निर्देश ३३४ प्ररूपणा
३५२ जघन्य अनुभागस्थान सत्कर्मरूप
प्रमाण
३५२ होकर भी बन्धस्थानके समान है श्रेणि
३५२ इसकी सप्रमाण सिद्धि
अवहारकाल उत्कर्षण अनुभागवृद्धिका कारण नहीं है भागाभाग
३६४ इस बातकी सिद्धि ३३५ अल्पबहुत्व
३६३ अन्तिम स्पर्धककी अन्तिम वर्गणाका द्वितीय श्रादि अनुभागस्थानका विचार ३६५ एक परमाणु अनुभागस्थान क्यों है
एक कर्मपरमाणुके अविभागप्रतिच्छेदों में इस बातकी सिद्धि
अनुभागस्थान, वर्ग, वर्गणा और योगस्थानके समान अनुभागस्थानके
स्पर्धक ये चा संकाय बन जाती हैं कथन न करनेका कारण
इस बातका निर्देश प्रदेशोंके गलनेसे स्थितिघातके समान
| एक कर्मपरमाणुके अविभागप्रतिअनुभागघात नहीं होता ३३७
च्छेदोंकी स्थान सा मानने संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती
पर एक स्थानमें अनन्त स्थान मिथ्यादृष्टिके अनुभागबन्ध जघन्य
नहीं प्राप्त होते इस बातका क्यों नहीं होता इस बातका विचार ३३८ |
विशेष उहापोह
३६६ संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समययर्ती - मिथ्यादृष्टिका अनुभागसत्कर्म जघन्य अनुभागस्थानके बन्ध और उत्कर्षणसे क्यों नहीं है इस बातका विचार ३३८
निष्पन्न होने पर वह बन्धसे अनुभागकी वृद्धि या हानिमें योग कारण ।
निष्पन्न हुआ क्यों कहा जाता है
३७२ नहीं है इस बातका निर्देश
इस बातका विचार ३३६ |
असंख्यातभागवृद्धि आदि किस प्रकार समुद्घातगत केवलीके उत्कृष्ट अनुभागकी सत्ता कैसे सम्भव है इस बातकी सिद्धि३४१
उत्पन्न होती हैं आदिका विशेष ऊहापोह
३७४ जघन्यस्थानकी स्वरूपसिद्धि
३४४ जघन्य स्थानकी चार प्रकारसे प्ररूपणा ३४७
बन्धस्थानोंके कारणभूत कषाय उदय अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणा
३४७
स्थानोंके अवस्थान क्रमका निर्देश ३८० वर्गणाप्ररूपणा
३४८ हतसमुत्पत्तिकस्थान विचार ३८०-३९० स्पर्धकप्ररूपणा ३४९ विशुद्धिस्थानका लक्षण
३८० अन्तरप्ररूपणा
३५० | हतहतसमुत्पत्तिकस्थानविचार ३९१-३९७
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