Book Title: Kasaypahudam Part 05 Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri Publisher: Bharatiya Digambar SanghPage 25
________________ क्षेत्र विषय पृष्ठ | विषय उच्चारणाके अनुसार जघन्य भाव २६७ कालानुगम २३८-२४० अल्पबहुत्व २६७-२६६ अन्तरानुगम २४१-२४६ पदनिक्षेप २६६-३०७ उत्कृष्ट अन्तरानुगम २४१-२४२ पदनिक्षेपके ३ अनुयोगद्वार २६६ उच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट समुत्कीर्तना उत्कृष्ट व जघन्य २६९-३०० अन्तरानुगम २४२-२४३ स्वामित्व , " ३००-३०५ जघन्य अन्तरानुगम २४४-२४७ ! अल्पबहुत्व , , ३८५-३०७ उच्चारणाके अनुसार जघन्य वृद्धिविभक्ति ३०७-३३० अन्तरानुगम २४७-२४६ वृद्धिविभक्तिके १३ अनुयोगद्वार उच्चारणाके अनुसार सन्निकर्ष २४९-२५६ | समुत्कीर्तना ३०७-३०८ उत्कृष्ट सन्निकर्ष २४६-२५२ स्वामित्व ३०८-३०६ जघन्य सन्निकर्ष २५२-२५६ । ३०४-२१२ भावानुगम अन्तर ३१२-३१६ अल्पबहुत्वानुगम २५६-२७३ नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ३१६-३१८ उत्कृष्ट अल्पबहुत्व २५६-२५९ भागाभाग ३१८-३२० जघन्य अल्पबहुत्व २५९-२६९ परिमाण ३२०-३२१ नरकगतिमें जघन्य अल्पबहुत्व २६९-२७१ ३२१ उच्चारणाके अनुसार जघन्य स्पशन ३२१-३२४ अल्पबहुत्व २७२-२७३ काल ३२४-३२६ अन्तर भुजगार विभक्ति २७३-२९४ ३२६-३२८ भाव चूर्णिसूत्रमें बन्धके अनुसार भुजगार, पद, ३२८ अल्पबहुत्व ३२८-३३० निक्षेप और वृद्धिविभक्तिके जानने मात्र की सूचना ३३०-३६७ स्थानप्ररूपणा २७३ भुजगारविभक्तिके १३ अनुयोग चूर्णिसूत्र में सत्कर्मस्थानोंके तीन द्वारोंकी सूचना २७३ | भेदोंका निर्देश समुत्कीर्तना २७३-२७४ | बन्धसमुत्पत्तिक आदि तीनों स्वामित्व २७५-२७६ | भेदोंका निरुक्त्यर्थ ३३१ काल २७६-२८० | स्थानप्ररूपणा कहने की सार्थकता अन्तर २८०-२८६ | चूर्णिसूत्रमें बन्धसमुत्पत्तिक स्थान सबसे नानाजीवोंकी अपंक्षा भंगविचय २८६-२८८ स्तोक हैं इस बातका निर्देश ३३२ भागाभाग २८८-२८९ | सबसे जघन्य बन्धसमुत्पत्तिकस्थान परिमाण २८९-२९० किसके होता है इस बातका निर्देश क्षेत्र २९०-२६१ व उसकी सिद्धि ३३२ स्पर्शन २६१-२६३ | किस अवस्थामें घातस्थान बन्धसमुत्पत्तिक काल २६३-२६५ स्थान कहा जाता है इस बातका निर्देश ३३३ अन्तर २६५-२६७ | अष्टांक किसे कहते हैं इस बातका विचार ३३३ ___३३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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