Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
( २ ) विषय
पृष्ठ | विषय स्वामित्व ९२-९३ | स्वामित्वानुगम
११३-११४ कालानुगम ६३-६६] कालानुगम
११४-११५ नारकियों में प्रति समय अनुभाग का
अन्तरानुगम
११६-११८ अपवर्तन नहीं होता इस बातका
नानाजीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ११८-११९ निर्देश ९४] भागाभागानुगम
१२० अनुभागसत्त्वका अपवर्तनाके विना
१२०-१२१
परिमाणानुगम अल्पतर पद नहीं होता इस । क्षेत्रनुगम
१२१ बातका निर्देश
१२१-१२२ स्पर्शनानुगम
१२२-१२३ चारित्रमोहकी क्षपणाके विना
कालानुगम
१२३-१२४ मोहनीयके अनुभागका प्रति समय
अन्तरानुगम घात नहीं होता इस बातका निर्देश
१२४ भावानुगम ९४
१२४-१२५ अन्तरानुगम
९७-६८
अल्पबहुत्वानुगम नानाजीवोंकी अपेक्षा भंगविचय
१२५-१२८ स्थान ६-१०० |
प्ररूपणा १०१-१०२
१२५-१०६ भागाभागानगम परिमाणानुगम
१०२ प्रमाण
१२७ क्षेत्रानुगम
१०३ अल्पबहुत्व
१२७-१२८ स्पर्शनानुगम २०३-१०४
१२६-३९७ उत्तर प्रकृतिअनुभागविभक्ति
उत्तर प्रकृतियोंकी स्पर्धकरचना कालानुगम
१०४-१०५ विचार
१२६-१३५ अन्तरानुगम
सम्यक्त्व प्रक्रतिका अनुभाग देशघाति । भावानुगम
है इसकी सिद्धि
१३० अल्पबहुत्वानुगम
१०७
सम्यक्त्व प्रकृति सम्यग्दर्शनके किस पदनिक्षेप
१०७-११२
. भागका घात करता है इसका विचार १३० पदनिक्षेपके ३ अनुयोगद्वार
१०७
संज्ञाके दो भेद और उनका पदनिक्षेप पदका अर्थ
_ विचार
१३५-१५५ समुत्कीर्तनानुगम
१०८
विस्थानिक अनुभागमें लता और उत्कृष्ट समुत्कीर्तनानुगम
१०८
दारुरूप अनुभाग लिया गया जघन्य समुत्कीर्तनानुगम
१०८
है इसकी सिद्धि . १३७-१३८ स्वामित्वानुगम
१०८-११०
लता अदि संज्ञाएं मान कषायके उत्कृष्ट स्वामित्वानुगम
१०८-११०
अनुभागमें आती हैं फिर भी जघन्य स्वामित्वानुगम
११०
उनका मिथ्यात्व आदिके अल्पबहुत्व
१११-११२
अनुभागमें ग्रहण होता है उत्कृष्ट अल्पबहुत्व
१११ इसकी सिद्धि
१३९ जघन्य अल्पबहुत्व
११२
मिथ्यात्व सर्वघाति क्यों है इसका वृद्धि विभक्ति ११२-१२५ विचार .
१३९ वृद्धिविभक्तिके १३ अनुयोगद्वार ११२ सम्यक्त्वका अनुभाग देशघाति तथा वृद्धि पदका अर्थ
एकस्थानिक और विस्थानिक समुत्कीर्तनानुगम
११३ | है ऐसा कहनेका कारण
११२
१४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org