Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
विषय-सूची
विषय
पृष्ठ
३०-४३ ४३-५२ ४३-४९ ४६-५२ ५३-५६ ५३-५४
५६-५६ ५६-५८ ५८-५६ ५९-६१
६०-६१ ६२-६५ ६२-६३
विषय वीर जिनको नमस्कार कर अनुभाग
विभक्तिके कहनेकी प्रतिज्ञा अनुभागविभक्ति के दो भेद अनुभागका स्वरूप विभक्ति शब्दका अर्थ मूलप्रकृति अनुभाग विभक्तिका अर्थ उत्तरप्रकृति अनुभागविभक्तिका अर्थ मूलप्रकृति अनुभागविभक्ति मूलप्रकृति अनुभागविभक्तिके २३ अनुयोद्वारोंके नाम मूलप्रकृति अनुभागविभक्तिमें सन्निकर्ष अनुयोगद्वारके न होनेका निषेध मूलप्रकृति अनुभागविभक्ति के अन्य अनुयोगद्वार संज्ञाके दो भेद और उनका विचार घातिसंज्ञाके दो भेद उत्कृष्ट घातिसंज्ञा सर्वघाति पदका अर्थ जघन्य घातिसंज्ञा स्थान संज्ञाके दो भेद और उनका विचार उत्कृष्ट स्थान संज्ञा जघन्य स्थान संज्ञा सर्व-नोसानुगम उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टानुगम जघन्य-अजघन्यानुगम सादि-अनादि-ध्रुव-अध्रुवानुगम स्वामित्वानुगम उत्कृष्ट स्वामित्व जघन्य स्वामित्व कालानुगम . उत्कृष्ट काल
जघन्य काल अन्तरानुगम उत्कृष्ट अन्तर जघन्य अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय उत्कृष्ट भंगविचय
जघन्य भंगविचय २-१२०
भागाभागानुगम उत्कृष्ट भागाभागानुगम जघन्य भागाभागानुगम परिमाणानुगम उत्कृष्ट परिमाणानुगम जघन्य परिमाणानुगम क्षेत्रानुगम
उत्कृष्ट क्षेत्रानुगम ३-६
जघन्य क्षेत्रानुगम स्पर्शनानुगम उत्कृष्ट स्पर्शनानुगम जघन्य स्पर्शनानुगम कालानुगम उत्कृष्ट कालानुगम जघन्य कालानुगम अन्तरानुगम उत्कृष्ट अन्तरानुगम जघन्य अन्तरानुगम भावानुगम अल्पबहुत्वानुगम
उत्कृष्ट अल्पबहुत्वानुगम ११-१९ | जघन्य अल्पबहुत्वानुगम ११-१५ भुजगार विभक्ति १५-१६ | भुजगार विभक्तिके १३ २०-४३ | अनुयोगद्वारों के नाम २०-३० । समुत्कीर्तना
६५-७७ ६५-७१ ७२-७७ ७७-८४ ७७-८१ ८१-८४
८५-८७
W
وداعا
६१
CS
६१ ९२-१०७
१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org