Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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पृष्ठ
१५७ / अर्थपद
विषय
• पृष्ठ | विषय उच्चारणाके अनुसार संज्ञाके दोनों उचारणाके अनुसार उत्कृष्ट भेदोंका विचार १५१-१५५ । अन्तरानुगम
२०२-२०५ घातिसंज्ञा विचार १५१-१५३ | जघन्य अन्तरानुगम
२०६-२१० स्थानसंज्ञा विचार
१५३-१५५ | अनन्तानुबन्धीकी क्षपणाके बाद उत्तरप्रकृति अनुभागविभक्तिके
पुन: उत्पत्तिके समान अन्य ____ अनुयोगद्वारोंका नामनिर्देश १५५-१५६ प्रकृतियोंकी पुन: उत्पत्ति क्यों सर्व-नोसर्वविभक्त्यनुगम
नहीं होती इसका विचार
२०७ उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टविभक्त्यनुगम. १५६
अनन्तानुबन्धीके समान मिथ्यात्व जघन्य-अजधन्यविभक्त्यनुगम १५६
आदिको विसंयोजना प्रकृति सादि-अनादि-ध्रुव-अध्रुवानुगम १५६-१५७
न माननेका कारण
२०८ स्वामित्वानुगम
१५७-१८५ यतिवृषभप्राचार्य द्वारा सर्वविभक्ति
उच्चारणाके अनुसार जघन्य आदि अधिकार न कह कर
अन्तरानुगम
२१०-२१३ स्वामित्व अधिकार कहनेका
| नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय २१३-२२१ कारण
२१४ उत्कृष्ट स्वामित्व
१५७-१६१ । उत्कृष्ट भङ्गविचय
२१५-२१८ जघन्य स्वामित्व
१६१-१७५ | उच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट चूर्णिसूत्रमें आये हुए सूक्ष्म पदकी
भङ्गविचय
२१९-२२० विशेष व्याख्या
१६१-१६२ | उच्चारणाके अनुसार जघन्य मिथ्यात्वका जघन्य अनुभाग
भङ्गविचय
२२०-२२१ सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके
भागाभाग
२२१-२२३ होता है इसका कारण
१६२ उत्कृष्ट भागाभाग
२२१-२२२ अनन्तानुबन्धीका जघन्य अनुभाग
जघन्य भागाभाग
२२२-२२३ सूक्ष्म एकेन्द्रियके क्यों नहीं
परिमाण
२२४-२२६ होता इसका विचार उत्कृष्ट परिमाण
२२४ नरकगतिमें उत्तर प्रकृतियोंके जघन्य
जघन्य परिमाण
२२४-२२६ अनुभागसत्कर्मका निर्देश १७५-१७६
क्षेत्र
२२६-२२७ उच्चारणाके अनुसार स्वामित्वानुगम १७६-१८५
उत्कृष्ट क्षेत्र
२२६ उत्कृष्ट स्वामित्व
१७९-१८१ जघन्य क्षेत्र
२२६-२२७ जघन्य स्वामित्व
१८१-१८५ स्पर्शन
२२७-२३२ कालानुगम
१८५-२०० उत्कृष्ट स्पर्शन
२२७-२२९ उत्कृष्ट काल
१८५-१८९ जघन्य स्पशन
२२६-२३२ उच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट काल १८९-१६१
कालानुगम
२३३-२३८ जघन्य काल
१६२-१६५ उत्कृष्ट कालानुगम
२३३-२३४ उच्चारणाके अनुसार जघन्य काल १९६-२००
| उच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट अन्तरानुगम २०१-२१३ कालानुगम
२३४-२३६ उत्कृष्ट अन्तनुगम २०१-२०२। जघन्य कालानुगम
२३६-२३८
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