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मैं रहा । मामा खरतर गच्छ के थे, फिर भी उदार थे । उदार वृत्ति की वजह से प्रतिक्रमण में सकल तीर्थ मुझ से बुलाते, स्वयं प्रेम से सुनते ।
नाना बागमलजी का मुझ पर बहुत ही प्रेम । उन्हें मैं बहुत ही प्रिय था ।
__मेरी प्रथम सगाई १५ वर्ष की उम्र में हुई थी, किन्तु मेरा कद छोटा होने से तथा उन्हें भी दूसरा कोई मिल जाने से वह सगाई तोड़ दी । उसमें भी कुछ अच्छा संकेत ही था । उसके साथ शादी करनेवाले जीवनभर परेशान ही हुए है । क्योंकि वह सदैव ही बिमार ही रही ।
हैद्राबाद से वि.सं. १९९६ में मैं फिर फलोदी लौटा । मिश्रीमलजी (कमल वि.) के पिता लक्ष्मीलालजी ने मेरी प्रशंसा सुनी थी । मेरे मामा और लालचंदजी द्वारा मिश्रीमलजी की पुत्री रतनबेन के साथ १५-१६ वर्ष की उम्र में मेरी शादी हुई । सं. १९९६ के माघ मास में शादी हुई और वैशाख मास में मेरे मामा स्वर्गवासी हुए । इस प्रकार हैद्राबाद का संबंध पूरा हुआ । अंतिम अवस्था में उन्हें (मामा को) संग के दोष से सट्टे का रंग लगा था । हैद्राबाद के उस एरिया में रहनेवाले कुटुंबों में से एक का भी वंश चला नहीं है । क्या मालुम मुस्लीम बादशाह निझाम के राज्य में पैसे ही कुछ ऐसे आये होंगे !
मेरी बहन चंपा अभी जीवित है।
हैद्राबाद में पढने का रस था । कोलकत्ता से 'जिनवाणी' सामयिक मैं मंगवाता था । यद्यपि वह सामयिक दिगंबर का था, फिर भी उसमें कहानी पढने का बड़ा मजा आता था । काशीनाथ शास्त्री के कथा-पुस्तक भी बहुत पढे हैं । महापुरुषों का चरित्र पढ कर मैं सोचता : मैं कब ऐसा जीवन जीऊंगा ? ___विजय सेठ विजया सेठानी जैसा पवित्र जीवन क्यों न जीया जाय ?
वि.सं. १९९८ में एक वर्ष तक फलोदी में दलाली का धंधा शुरू किया ।
बचपन से धार्मिक वृत्ति थी । बचपन में प्रभावना की लालच से जिनालय में होती पूजा आदि में जाता था । बड़ा
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