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बीकानेर के व्याख्यान ]
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सन्त्री ने विचार किया कि यह यज्ञ राजा की आज्ञा से हो रहा है । पुरोहित लोग यों कहने से नहीं मानेंगे। अतएव उसने प्रधान पुरोहित से कहा- मैं लौटकर आता हूँ तब तक इन पशुओं को मारने का काम बन्द रक्खा जाय । यह मेरी अधिकृत आज्ञा है ?
मन्त्री सीधा राजा के पास पहुँचा । उसने राजा से कहामहाराज ! नगर में बड़ा अत्याचार हो रहा है ।
राजा - तो आप किस काम के लिए हैं ? अत्याचार को रोकते क्यों नहीं ?
मन्त्री-अत्याचार करने वाले तो स्वयं राजगुरु हैं । उनके संबंध में जब तक आप विशेष आज्ञा न दें, मैं क्या कर सकता हूँ ?
राजा - राजगुरु क्या अत्याचार कर रहे हैं ?
मन्त्री - लोगों के बच्चों को जबर्दस्ती मुँड़कर साधु बना रहे हैं । सब बच्चे और उनके माँ-बाप रो रहे हैं। आप जैसी श्राज्ञा दें वैसा ही किया जाय ।
राजा की राजगुरु की जबर्दस्ती अच्छी नहीं लगी । उसने मंत्री से कहा - इस अत्याचार को जल्दी रोको । न मानें तो कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करे।।
राजा की आज्ञा प्राप्त कर मंत्री फिर यज्ञस्थल पर आया । उसने यज्ञ करने वाले पुरोहितों से कहा - इन पशुओं को छोड़ दो। इनका हवन नहीं किया जायगा ।
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