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[ जवाहर-किरणावली
शांति मिलेगी।
मन्त्री-ईश्वर अगर सब का स्वामी है तो इन बकरों का भी स्वामी है या नहीं ? और जैसे सब लोग शांति चाहते हैं उसी प्रकार ये शांति चाहते हैं या नहीं ? ? अगर यह भी शांति चाहते हैं तो इन्हें क्यों मारा जा रहा है ?
पुरोहित, मन्त्री के प्रश्न का समुचित उत्तर नहीं दे सका। अतएव उसने क्रोध में आकर कर्कश स्वर में कहा-श्राप नास्तिक मालूम होते हैं । यहाँ से दूर चले जाइए, अन्यथा यज्ञ अपवित्र हो जायगा।
मन्त्री-मैं नास्तिक नहीं, आस्तिक हूँ। परन्तु यह जानना चाहता हूँ कि जिन जीवों के लिए तुम शांति चाह रहे हो, उनमें यह बकरे भी हैं या नहीं?
सम्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविडं न मरिज्जिउं । अर्थात्-सभी जीव जीवित रहना पसंद करते हैं । मरना कोई नहीं चाहता।
जब सभी जीव जीना चाहते हैं और मरना नहीं चाहते तो इन्हें अशांति पहुँचा कर, मारकर, शांति चाहना कहाँ का न्याय है ? तुम भी शांति चाहते हो, यह बकरे भी शांति चाहते हैं, फिर इन्हें क्यों मारते हो?
पुरोहित के पास इस सरल प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। वह ऊटपटांग बात करके मन्त्री को टालने का उपाय करने लगा।
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