Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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शिक्षा-दर्शन : एक सामान्य परिचय
सिखलाया नहीं जाता है तो वह व्यवहार में नहीं आ पाता है और यदि व्यवहार में नहीं आता है तो वह धीरे-धीरे मिट जाता है। इस प्रकार दार्शनिक सिद्धान्त को शिक्षा ही नष्ट होने से बचाती है। परन्तु वह शिक्षा भी कोई अर्थ नहीं रखती जिसमें कोई मौलिक सिद्धान्त या दर्शन न हो। शिक्षा को खोखलापन से बचाने के लिए उसमें दर्शन की प्रतिष्ठा आवश्यक होती है। इस प्रकार दर्शन और शिक्षा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, दोनों में अन्योन्याश्रयिता का सम्बन्ध है और इन दोनों के बीच की कड़ी शिक्षा-दर्शन है। यदि शिक्षा-दर्शन न हो तो दर्शन और शिक्षा में कोई सम्बन्ध न बने। इस प्रकार शिक्षा-दर्शन, दर्शनशास्त्र और शिक्षाशास्त्र के बीच मध्यस्थता करनेवाला है या कहा जा सकता है कि दर्शन और शिक्षाशास्त्र के सम्बन्ध का आधार शिक्षा-दर्शन
प्रधानतः दर्शनशास्त्र के तीन अंग हैं- तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा और आचारमीमांसा। इनमें प्रथम दो अंग विधेयात्मक या तथ्यात्मक पक्ष की पुष्टि करते हैं, परन्तु आचारमीमांसा या नीतिशास्त्र नियामक विज्ञान (Normative Science) है जो यह बताता है कि हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए? हमें क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए? शिक्षा-दर्शन में शिक्षा क्या है? के रूप में जब समस्या उपस्थित होती है तो बहुत ही आसान ढंग से कह दिया जाता है कि जो कुछ भी हम व्यवस्थित ढंग से सीखते हैं वह शिक्षा है। परन्तु शिक्षा क्या है? यह उतना महत्त्व नहीं रखता जितना कि शिक्षा कैसी होनी चाहिए और शिक्षा किस प्रकार दी जानी चाहिए?
इस तरह शिक्षा-दर्शन में विधि पक्ष से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नियामक पक्ष है जबकि दर्शनशास्त्र में नियामक पक्ष से प्रबल विधि पक्ष है। इस दृष्टि से दर्शनशास्त्र मुख्य रूप से विधेयात्मक विज्ञान (Positive Science) है तो शिक्षा-दर्शन मुख्य रूप से नियामक faşina (Normative Science)
शिक्षा-दर्शन की समस्याएं शिक्षा-दर्शन का कार्य उस सिद्धान्त को प्रस्तुत करना है जिसके आधार पर शिक्षा की व्यावहारिक गतिविधियाँ होती हैं। किन्तु हम शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हमारी प्राचीन शिक्षा जो आदर्शवाद पर आधारित तथा पूर्व निश्चित नियमों द्वारा निर्धारित थी उस पर आज भौतिकता का नियंत्रण है जिससे मूल्यों की अवहेलना हो रही है और शिक्षा को अनेक समस्यायों का सामना करना पर रहा है, जैसे- सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक समस्यायें आदि। फिर भी शिक्षा दर्शन इन समस्यायों का समाधान ढूढ़ता है।
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