Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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७८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (१) वेद- जैन ग्रन्थों में तीन वेदों का उल्लेख मिलता है। यथा- 'ऋग्वेद', 'यजुर्वेद'
और 'सामवेद'।७५ वैदिक ग्रन्थों में निम्नलिखित शास्त्रों के उल्लेख हैंछः वेद- 'ऋग्वेद', 'यजुर्वेद', 'सामवेद', 'अथर्ववेद', इतिहास और निघण्टु। छः वेदाङ्ग- गणित, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त और ज्योतिष। छः उपाङ्ग- इसमें वेदाङ्गों में वर्णित विषय और षष्ठितन्त्र सम्मिलित हैं।७६ 'उत्तराध्ययन की टीका ७७ में चौदह विद्यास्थानों को गिनाया गया है, जो निम्न
प्रकार से हैं- छः वेदाङ्ग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र। (४) 'अनुयोगद्वार'७८ और 'नन्दी'७९ में भी लौकिक श्रुत का उल्लेख किया गया
है जिसमें भारत, रामायण, भीमासुरोक्त (भीमासुरुक्खं), कौटिल्य, शकटभद्रिका (सगदिभद्दिआऊ), धोटक मुख, कार्पासिक, नागसूक्ष्म, कनकसप्तति, वैशेषिक, बुद्धवचन, त्रैराशिक, कापिलीय, लोकायत, षष्टितन्त्र, माठर, पुराण, व्याकरण, भागवत, पातञ्जलि, पुष्यदैवत, लेख, गणित, शकुनिरूत, नाटक अथवा बहत्तर कलाएँ और चार वेद अंगोपांग आदि विषयों को सम्मिलित किया गया है।
'स्थानांग' में नौ पापश्रुत८° स्वीकार किये गये हैं। स्वहित एवं परहित की भावना से इन पापश्रुतों का भी ज्ञान विद्यार्थियों को कराया जाता था(१) उत्पात- रुधिर की वृष्टि अथवा राष्ट्रोत्पात का प्रतिपादन करने वाला शास्त्र या
प्रकृति विप्लव और राष्ट्र विप्लव का सूचक शास्त्र। (२) निमित्त- अतीत काल के ज्ञान का परिचायक शास्त्र, जैसे कूटपर्वत आदि। (३) मन्त्रशास्त्र- भूत, वर्तमान और भविष्य के फल का प्रतिपादक शास्त्र। (४) आख्यायिका- मातंगी विद्या जिससे चाण्डालिनी भूतकाल की बातें
कहती है। (५) चिकित्सा- रोगनिवारक औषधियों का प्रतिपादक आयुर्वेद शास्त्र। (६) लेख आदि बहत्तर कलायें अर्थात् कलाश्रुत- स्त्री-पुरुषों की कलाओं का
प्रतिपादक शास्त्र। (७) आवरण (वास्तुविद्या)- भवन निर्माण सम्बन्धी वास्तुशास्त्र।
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