Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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शिक्षक की योग्यता एवं दायित्व
१५१ नियुक्ति विधि
__'भगवती आराधना' में उत्तराधिकारी आचार्य की नियुक्ति के विषय में कहा गया है७७ कि संलेखना करनेवाले आचार्य को गण का हित सोचना चाहिए तथा आगे के लिये संघ की क्या व्यवस्था की जाये? इस पर विचार करना चाहिए। इस सम्बन्ध में कहा गया है कि संलेखना लेनेवाले आचार्य अपनी आयु व स्थिति विचारकर सम्पूर्ण संघ को और बालाचार्य को बुलाकर शुभ दिन, शुभ करण, शुभ नक्षत्र, शुभ लग्न
और शुभ देश में गच्छ का अनुपालन करने योग्य गुणों से विभूषित अपने समान भिक्षु के विषय में विचार करने के पश्चात् कुछ उपदेश देकर उस बालाचार्य के लिए अपने गण का त्याग करते थे अर्थात् अपना पद छोड़कर सम्पूर्ण गण बालाचार्य को सौंप देते थे। इस तरह बालाचार्य ही संघ के नायक माने जाते थे।
आचार्य उस नवीन आचार्य की अनुज्ञा करते हुए चतुर्विध संघ से कहते थेज्ञान, दर्शन और चारित्रात्मक धर्मतीर्थ की व्युच्छित्ति न हो, इसलिए उसे सब गुणों से युक्त जानकर मैंने आचार्य बनाया है। अब यह ही तुम्हारा आचार्य है। आप सब इस गण का पालन करें। ऐसा कहकर नवीन आचार्य की अनुज्ञा करते थे। वे अपने द्वारा स्वीकृत गणी (आचार्य) को गण के मध्य में स्थापित करके तथा स्वयं अलग होकर बाल और वृद्ध मुनियों से भरे उस गण में मन, वचन और कायपूर्वक क्षमा मांगते थे। वे कहते थे- दीर्घकाल तक साथ रहने से उत्पन्न हुए राग और द्वेष के कारण जो कटु और कठोर वचन कहे गये हों, उन सबके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। समस्त गण भी वन्दना करके, पृथ्वी पर पाँचों अंगों को स्थापित कर पंचांग नमस्कार करके संसार के दुःखों से रक्षा करनेवाले सबको प्रिय अपने दस प्रकार के उत्तम क्षमादि रूप धर्म में स्वयं प्रवृत्त और दूसरों को प्रवृत्त करनेवाले आचार्य से मन, वचन और काय से क्षमा माँगते थे।
अन्तिम रूप से आचार्य अपने पद से अनेक प्रकार से शिक्षाप्रद उपदेश प्रदान करते हुए चतुर्विध संघ से कहते थे- जिनेन्द्र के द्वारा कहे गये सूत्र आदि के अर्थ में जो निपुण है, जिसने प्रायश्चित्तशास्त्र सुना है, उस आचार्य को अपने प्रयोजन की चिन्ता करते हुए भी जिन भगवान् की आज्ञा से गण को मुक्ति के मार्ग में सम्यक्-दर्शन, ज्ञान
और चारित्र को बढ़ानेवाला विहार तथा उत्तरोत्तर उन्नत अनुष्ठान करना चाहिए। इस प्रकार शुभ तिथि आदि से युक्त काल और देश में गणाधिपति आचार्य गण को स्नेहिल माधुर्ययुक्त, सारवान, गम्भीर, सुखदायक चित्त को आनन्द प्रदान करनेवाली हितकारी शिक्षा देते थे।
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