Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२२० जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
शासन भी इसी भावना से ग्रसित है। नैतिक शिक्षा या चारित्रिक-शिक्षा में शासन को उसकी धर्मनिरपेक्षता दूषित होती दिखायी पड़ती है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का यह तो मतलब नहीं है कि धर्म और नीति से विमुख हो जाया जाये। परन्तु आज यही हो रहा है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शिक्षा से नैतिकता और चरित्रता को निकाल फेंक दिया गया है। आज की शिक्षा योजना में आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा का कोई स्थान नहीं है जबकि अब तक के शिक्षा आयोगों ने अपनी अनुशंसाओं में आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों की आवश्यकताओं को प्रतिपादित किया है।
हमारे सामने एक और समस्या है और वह है भाषा की। प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति होती है, अपनी भाषा होती है। परन्तु आज समाज में उसे ही श्रेयस्कर माना जा रहा है, उन्हें ही उच्च स्थान प्राप्त है जो अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन सत्य तो यह है कि कोई भी विद्यार्थी अपनी मातृभाषा के माध्यम से जितना विस्तृत ज्ञान सहजतया प्राप्त कर सकता है, उतना किसी अन्य भाषा से नहीं। किसी भी राष्ट्र की शिक्षा वहाँ की मातृभाषा या राष्ट्रीय भाषा में दी जाती है तो वह श्रेयष्कर मानी जाती है, किन्तु आज हम स्वतन्त्र होकर भी दूसरे की भाषा को अपनी जुबान पर बैठाये हुए हैं। जैसी मान्यता है - आधुनिक शिक्षा की नींव लार्ड मैकाले द्वारा डाली गयी, परन्तु आधुनिक शिक्षा में है क्या इसे देखने का प्रयास करते हैं।
आधुनिक शिक्षा को सामान्य तौर पर हम तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं • उच्च शिक्षा, मध्यम शिक्षा तथा निम्न शिक्षा।
उच्च शिक्षा- इसके अन्तर्गत चिकित्सा, अभियांत्रिकी, तकनीकी, कम्प्यूटर आदि की शिक्षा को रख सकते हैं जिसे पाने के लिए देश के उच्चकोटि के मेधावी छात्र उद्यत रहते हैं।
___ मध्यम शिक्षा- इसके अन्तर्गत कला, वाणिज्य आदि को रखा जा सकता है। इस शिक्षा को पाकर भी पानेवालों को यह नहीं मालूम होता कि मैंने क्या पाया? क्योंकि यह शिक्षा दिशाविहीन जैसी प्रतीत होती है।
निम्न शिक्षा- वेद, पुराण, संस्कृत आदि की शिक्षा को हम निम्नकोटि में रख सकते हैं। संस्कृत जो कभी भारतीय शिक्षा का गौरव थी और जिसका विश्व इतिहास में सर्वोच्च स्थान था वह आज निम्न श्रेणी में आ गयी है।
शिक्षा की उपर्युक्त तीन कोटियों से मेरा मतलब समाज में शिक्षा के प्रति व्याप्त धारणाओं से है। जहाँ तक उच्च शिक्षा, निम्न शिक्षा का सवाल है तो इतना कहा जा सकता है कि शिक्षा चाहे उच्च हो या निम्न, परन्तु उसके उद्देश्य निश्चित होने चाहिए।
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