Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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उपसंहार (ङ) बालकों को पाठशाला में दाखिला कराते समय अच्छे और अनुशासित पाठशाला
में दाखिला करायें। (च) यदि उच्च शिक्षा हेतु बालकों को परिवार से अलग रहना पड़े तो उन्हें विश्वविद्यालय
के ऐसे छात्रावासों में प्रवेश दिलावें जहाँ आचार-विचार का समुचित ध्यान दिया जाता हो।
बालकों के निर्माण में शिक्षक बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। माता-पिता के संस्कारों से सन्तान के प्रारम्भिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है, तत्पश्चात् उसका परिवेश और वातावरण उसके संस्कारों को जन्म देता है और वह संस्कार पल्लवित होता है। अपनी देखरेख में शिक्षार्थी को योग्य और अनुकूल बनाना शिक्षक का महनीय गुण है। शिक्षक का आदर्श जीवन विद्यार्थी के लिए प्रेरणा-पुंज का काम करता है, किन्तु क्या वर्तमान में ऐसे शिक्षक आसानी से मिल सकते हैं जो बालकों को सही मार्ग दिखा सकें, उसे नैतिकता-सम्पन्न तथा संस्कारी बना सकें। एक समय था जब गुरु की गरिमा ही विद्यार्थियों को आश्रम में आने के लिए आकर्षित करती थी. पर तत्समय गुरु स्वामी होता था, सेवक नहीं। आज समाज और सरकार ने गुरु को सेवक ही बना दिया है। समाज में उसका स्थान पहले से गिर गया है और जब तक शिक्षक को समाज में राजनीतिज्ञों एवं पूँजीपतियों से ऊपर स्थान नहीं दिया जाता, शिक्षक को सेवक के स्थान से ऊपर उठाकर गुरु के गरिमामय पद पर प्रतिष्ठित नहीं किया जाता, शिक्षक पद के लिए बौद्धिक योग्यता के साथ-साथ चरित्रनिष्ठा को नहीं परखा जाता है तब तक उससे समाज-निर्माण तथा बालकों में चरित्र-निर्माण की अपेक्षा करना यथोचित नहीं है। यदि शिक्षक अपने आपको इन सब बाधाओं से अलग कर लें तो आज भी चरित्र-निर्माण और समाज-निर्माण में अहम् भूमिका अदा कर सकते हैं। शिक्षकों के भी बालकों के प्रति कुछ कर्तव्य बनते हैं जो इस प्रकार हैं - (क) सर्वप्रथम शिक्षक अपने को सदाचारी एवं चरित्रनिष्ठ बनावें ताकि उनके प्रति
विद्यार्थियों के मन में श्रद्धा, विनय एवं समादर की भावना जाग्रत हो। (ख) शिक्षकों का सभी विद्यार्थियों के प्रति समान व्यवहार होना चाहिए। (ग) शिक्षक तथा शिक्षण संस्थाएँ छात्रों के आचार-विचार पर समुचित दृष्टि रखें तथा
सच्चरित्र, सुसंस्कारी, विनयशील एवं सेवाभावी छात्रों को पुरस्कृत एवं प्रोत्साहित
कर छात्र वर्ग में इन गुणों के प्रति निष्ठा जाहिर करें। (घ) शिक्षक विद्यार्थियों के साथ पुत्रवत व्यवहार करें।
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