Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व
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(२०) भोजन कर लेने पर पानी देकर पात्र को झुकाकर अच्छी तरह धो-पोंछ कर मुहूर्त
भर धूप में सुखाना।
(२१) पात्र को धूप में अधिक समय तक नहीं डालना ।
(२२) यदि गुरु स्नान करना चाहें तो उन्हें स्नान कराना ।
(२३) यदि गुरु स्नानागार में जाना चाहें तो स्नान- चूर्ण ले जाना, मिट्टी भिगोना, स्नानागार केपीढ़े को लेकर उनके पीछे-पीछे जाना, पीढ़े को देकर तथा चीवर लेकर एक ओर रखना, स्नान चूर्ण देना, मिट्टी देना तथा शरीर मलना आदि।
(२४) गुरु के नहाने के पूर्व ही अपनी देह को पोंछ- सुखाकर तथा कपड़ा पहन कर गुरु के शरीर से पानी पोंछना, वस्त्र देना तथा संघाटी देना ।
(२५) स्नानागार का पीढ़ा लेकर, पहले आकर आसन बिछाना ।
(२६) जिस उद्यान में गुरु विहार करते हैं, यदि वह मैला है तो समर्थ होने पर उसे
साफ करना।
(२७) उद्यान साफ करने से पहले पात्र, चीवर आदि निकालकर एक ओर रख देना । (२८) गद्दा, चादर तथा तकिया एक ओर निकाल कर रखना ।
(२९) चारपाई खड़ी करके दरवाजे से बिना टकराये लेकर एक ओर रखना ।
(३०) पीढ़े को खड़ा करके दरवाजे में बिना टकराये चारपाई के पावे के ओट में पौदान को एक ओर रखना, सिरहाने का पटरा एक ओर रखना ।
(३१) यदि विहार में जाला लगा हो तो उल्लोक (उर्ध्वलोक) पहले साफ करना । (३२) अंधेरे कोने को साफ करना ।
( ३३ ) यदि भूमि मलिन होकर काली हो गयी हो तो कपड़ा भिंगोकर रगड़कर साफ करना जिससे धूल के कारण खराब न हो जाये ।
(३४) कूड़े को ले जाकर एक तरफ फेंकना ।
(३५) फर्श को धूप में सुखाकर फटकारकर लाना और पहले की भाँति बिछा देना । (३६) चारपाई को धूप में सुखाकर साफकर पुनः निश्चित स्थान पर रखना। (३७) गद्दा, चादर धूप में सुखाकर, साफकर, फटकारकर बिछाना ।
(३८) पीकदान सुखाकर साफकर यथास्थान रखना ।
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