Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 212
________________ शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व १९९ ६२. सेलघण कुडग चालिणी, परिपूणग हंस महिस मेसे या मसग जलूग बिराली, जाहग गो भेरी आभीरी। 'बृहत् कल्पसूत्र', पीठिका, ३३४. ६३. मृच्चालिन्यजमार्जारशुककङ्कशिलादिभिः। गोहंसमहिषच्छिद्रघटदंशजलोककैः।। 'आदिपुराण', १/१३९ ६४. __ 'महावस्तु', जि० २/४३४/१० ६५. 'सौन्दरनन्द', २/६३ __ 'ललितविस्तर', पृ०-२४९ ६७. वही ६८. बौद्ध साहित्य में ६४ लिपियाँ मानी गयी हैं ६९. लेफमैन, 'ललितविस्तर', १२५/१७ ७०. पुरी, 'इण्डिया अण्डर दी कुषाणाज', पृ०-१२७. ७१. वाटर्स, 'ऑन युवानच्यांग ट्रैवेल्स', पृ० १५४-५५, बील १२२ ७२. 'इत्सिंग रेकर्ड', पृ०-१७०-१७४. ७३. वही, पृ०-१८४ ७४. 'महावस्तु', जि० ३/१५०/१४-१५ ७५. 'दिव्यावदान', १६०/२४-३०. 'महावस्तु', जि० ३/२६४/८-१२ वही, जि० ३/२६५/१३-१४ ७८. तत: स कृत्वा मुनये प्रणाम गृहप्रयाणाय मतिं चकार। अनुग्रहार्थं सुगतस्तु तस्मै पात्रं ददौ पुषकरपत्रनेत्रः।। ‘सौन्दरनन्द', ५/११ नन्दं ततोन्तर्मनसा रुदन्तम् एहीति वैदेहमुनिर्जगाद। शनैस्ततस्तं समुपेत्य नन्दो न प्रव्रजिय्याम्यहमित्युवाच।। वही, ५/३५ ८०. इत्येवमुक्तः स विनायकेन हितैषिणा कारुणिकेन नन्दः। कर्तास्मि सव्वें भगवन् वचस्ते तथा यथाज्ञापयसीत्युवाच।। वही, ५/५० ८१. 'अवदान', जि० १/१३६/५. ८२. विनयपिटक, राहुल सांकृत्यायन, पृ०-१२२-१२३. वही, पृ०-११९; अवदान, जि० १/१३६/५-६; मित्रा, 'ललितविस्तर', २७०/ १७-१८; "बुद्धचरित', ६/५७. ८४. 'महावस्तु', जि० ३/१९१/१२. ८५. वही, जि० २/२६३/१६. ८६. वही, जि० ३/२६३/१८. ८७. 'दिव्यावदान', २२/१८. ८८. 'विनयपिटक', पृ०-१२३ तथा 'दिव्यावदान', २९/३०. ७७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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