Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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५६. 'निशीथसूत्र', १८/१९-२३
वही, ३ / १-१५
वही, २/४३-४५
५७.
५८.
५९.
६०.
वही, ९ / १-६
जे भिक्खू आयरिय अदित्तं आहारेइ, आहारंते वा साइज्जइ ।
जे भिक्खू आयरियं उवज्झाएहिं अविदीणं विथगयं आहारेइ, आहारंत वा साइज्जइ । भिक्खू ठेवणाकुलाई अजाणियं अपुच्छियं अगवासयं पुव्वामेव पिंडवाय पडियाए । अणुपविसइ, अणुपविसंतं वा साइज्जइ । 'निशीथसूत्र', २२-२४
६१. हिमत्ते भुजइ भुंजंतं वा साइज्जइ । 'निशीथसूत्र', १२/१४
६२.
'विनयपिटक', रा० सां०, पृ०-५२
६३.
वही
६४. वही,
पृ० - २५
६५. वही, पृ० - २५
६६.
'निशीथ',
१९ / १०-१८
६७.
जे भिक्खू हेठिल्लाइं समोसरणाई अवामत्ता, उवरिम सुयं वासति, वायंतं वा साइज्जइ । जे भिक्खू णवबंभवेराइ अवाएत्ता अवरिमसुयं वाएइ वायंतं वा साइज्जइ । 'निशीथसूत्र', १९ / १९-२०
जे भिक्खू दोहपि सरिसमाणं एक्कसं सिक्कावेति, एकं न विक्खावेति एक्क वाएइ । एक्कं नवाएइ, एक्कं न सं सिक्खावहतं वा एक्कं णवायंतं वा साइज्जइ ।
वही,
-
६८.
गुरु-शिष्य-सम्बन्ध एवं दण्ड- व्यवस्था
६९.
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१९ / २५
जे भिक्खू आयरियं उवज्झाएहिं अविदिण्णगिरं आतियइ, आतियतं वा साइज्जइ ।
वही, १९ / २५
७०.
'बृहत्कल्पभाष्य', भाग-१, २८८-९९.
७१.
'विनयपिटक', पृ० - ४४५.
७२. 'पातिमोक्ख', भिक्खुनीपाचित्तिय, ४९-५० ७३. वही, १०३
२१५
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