Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 210
________________ शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व १९७ ३०. २५. 'समवायांग', ३३, 'श्रमणसूत्र', ४७६. २६. 'उत्तराध्ययन', १२/१८-२९ २७. 'उत्तराध्ययन' (टीका) ३/६५ २८-२९.पुज्जा जस्स पसीयन्ति, संबुद्धापुव्वसंथुया। पसन्ना लाभइस्सन्ति, विउलं अट्ठियं सुयं।। तवोसमायारिसमाहिसंबुद्धे। महज्जुई पंच वयाइं पालिया। 'उत्तराध्ययन', १/४६-४७ वहणे वहमाणस्स, कन्तारं अइवत्तई। जोए वहमाणस्स, संसारो अहवत्तई। वही, २७/२ ३१. वही, १/४५. ३२. जे आयरिय-उवज्झायणं, सुस्सूसा वयणंकरा। तेसिं सिक्खापवटुंति, जलसित्ता इव पायवा।। 'दशवैकालिक' (विनयसमाधि), ९/ १२. ३३. आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं। जहोवइटें अभिकंखमाणो, गुरुं तु नाऽऽसाययई स पुज्जो।। वही, ९/३/२श. ३४. प्राचीनकाल में भारतीय माता-पिता अपनी कन्याओं को बाल्यावस्था में शिक्षा-दीक्षा द्वारा सुयोग्य करते थे और फिर उसका यौवनावस्था में सुयोग्य वर से योग्यकुल में विवाहकर देते थे जिससे उनकी सदाचारी और विदुषी पुत्रियों को किसी प्रकार का दुःख नहीं होता था। ३५. जे माणिया समयं माणयंति, जत्तेण कन्नं व निवेसयंति। ते माणए माणरिहे तवस्सी, जिइंदिए सच्चरए सपुज्जो। वही,९/३/१३ ३६. राइणिएसु विणयं पउंजे, डहरा वि य जे परियायजेट्ठा। नियत्तणे वट्ठइ सच्चवाई, ओवायवं वक्ककरे स पुज्जो।। 'दशवैकालिक', ९/३/३ ३७. पगईए मंदा वि भवंति एगेऽहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया। आयारमंता घुणसुट्ठियप्पा जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा।। वही, ९/१/३ ३८. न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए। वही, ९/१/७ जो पावगं जलियमवक्कमेज्जा, आसीविदं वा वि दुहु कोवएज्जा। जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी, एसोवमाऽऽसायणया गुरुणं। वही, ९/१/६. ४०. जहा सुणी पूई-कण्णी निक्कसिज्जइ सव्वसो।। एवं दुस्सील-पडिणीए, मुहरी निककसिज्जई। 'उत्तराध्ययन', १/४ खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई। __ असमाहिं च वेएइ तोत्तओ य से भज्जई।। वही, २७/३. ४२. अणासवा थूलवया कुसीला, मिउंपि चण्डं पकरेंति सीसा। चित्ताणुया लहु दक्खोववेया पसायए तेहु दुरासयं पि।। वही, १/१३ ४१. खलुक ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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