Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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१४.
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१९६ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन १२. वही, ३८/११०-११३. १३. वही, ३८/१२३-१२४.
मधुमांसपरित्याग: पंचोदुम्बरवर्जनम्। हिंसादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात् सार्वकालिकम्। वही, ३८/१२२. आणानिद्देसकरे गुरूणमुववायकारए। इंगियागारसंपन्ने, से 'विणीए' त्ति वुच्चई।। आणाडऽनिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए।
पडिणीए असंबुद्धे, 'अविणीए' ति वुच्चई।। 'उत्तराध्ययन', १/२-३ १६. वही, १०/११-१३ १७. अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खासीले त्ति वुच्चई। .
अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे।। नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए।
अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वुच्चई।। वही, ११/४-५ १८. 'आवश्यकनियुक्ति', २२. १९. शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा।
स्मृत्यूहापोहनिर्णीती: श्रोतुरष्टौ गुणान् विदुः।। 'आदिपुराण', १/१४६ अह चउदसहिं ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुच्चई सो उ निव्वाणं च न गच्छइ।। अभिक्खणं कोही हवइ पबन्ध च पकुव्वई। मेत्तिज्जमाणो वमइ सुयं लद्धण मज्जई।। अवि पावपरिक्खेवी अविमित्तेसु कुप्पई। सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासइ पावर्ग।। पइण्णवाई दुहिले थद्धे लुद्धे अणिग्गहे।
असंविभागी अचियत्ते अविणीए ति वुच्चई। 'उत्तराध्ययन', ११/६-९ २१. सो वि अन्तरभासिल्लो दोसमेव पकुव्वई।
आरियाणं तं वयणं पडिकूलेइ अभिक्खण।। न सा ममं वियाणाइ न वि सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने साहू अन्नोऽत्थ वच्चउ।। पेसिया पलिउंचन्ति ते परियन्ति समन्तओ।
रायवेट्टि व मत्रन्ता करेन्ति भिउडि मुहे।। वही, २७/११-१३ २२. भिक्खालसिए एगे, एगे ओभाणभीरुए थद्धे।। वही, २७/९-१० २३. वहा, २०
वही, २७/४-८ २४. कण-कुण्डगं चइत्ताणं विट्ठ भुंजइ सूयरे।
एवं सील चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए।। वही, १/५.
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