Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व १९३ (५४) चीवर को रंगते समय अच्छी तरह से उलट-पुलट कर रंगना जिससे कहीं खाली न छूट जाये। (५५) उपाध्याय की आज्ञा के बिना न किसी को पात्र देना न किसी का पात्र ग्रहण करना, न किसी को चीवर देना और न किसी से लेना, न किसी को परिष्कार अर्थात् उपयोगी सामान देना और न किसी से लेना, न किसी के बाल काटना न किसी के कटवाना, न किसी का देह घसना न किसी से घसवाना, न किसी की सेवा करना और न किसी से करवाना, न किसी के पीछे चलनेवाला भिक्ष बनना और न किसी को बनाना, न किसी का भिक्षान्न लेना और न किसी से दिलवाना आदि। (५६) उपाध्याय से पूछे बिना न किसी के गाँव जाना, न साधना के लिए श्मशान जाना, न किसी दिशा की ओर चल देना। (५७) यदि उपाध्याय अस्वस्थ हों तो उनके स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करना , यदि स्वस्थ न हो पायें तो जीवनभर उनकी सेवा करना। इत्सिंग ने भी शिक्षार्थियों के कर्तव्यों तथा अनुशासन के नियमों का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि सद्धिविहारिक रात्रि के पहले और अन्तिम प्रहर में गुरु के पास जाता था। वह उपाध्याय के शरीर पर मालिश करता, उनके कपड़ों की तह करता और कभी-कभी उनकी कोठरी और आँगन में झाड़ भी लगाता था। पानी को भली-भाँति देखकर कि उसमें कीटाणु तो नहीं हैं, वह उपाध्याय को देता था। प्रतिदिन उपाध्याय के स्वास्थ्य के बारे में पूछता था। फिर वह अपने गुरुजनों को प्रणाम करने के लिए उनके कमरों में जाता था। इसके बाद वह धर्मग्रन्थों का अध्ययन करता था और जब उपाध्याय उसे भोजन करने की अनुमति देते थे तब वह भोजन करता था।१०८ शिक्षार्थी के प्रकार बौद्ध ग्रन्थों में शिक्षार्थी के लिए शिष्य ०९ सद्धिविहारिक, ११° ब्रह्मचारी,१११ श्रमण, श्रामणेर, ११२ समिधाहारक,११३ अन्तेवासी११४ आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है। बौद्ध विहारों में सद्धिविहारिकों के अतिरिक्त अन्य दो प्रकार के विद्यार्थी भी होते थे११५ जिनमें माणवकों की अधिक चर्चा मिलती है।११६ माणवक वे विद्यार्थी कहलाते थे जो भविष्य में दीक्षा प्राप्त करने की इच्छा से बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करते थे। इनकी तीन कोटियाँ बतायी गयी हैं। ११७ सद्धिविहारिक वे भिक्षु होते थे जो बौद्ध-ग्रन्थों का आवश्यक ज्ञान प्राप्त करके अपनी आध्यात्मिक उन्नति करना चाहते थे।११८ सद्धिविहारिक शब्द 'सद्धि' और 'विहरक' के संयोग से बना है। सद्धि का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250