Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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१५८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (४) यदि शिष्य को चीवर नहीं है तो चीवर देना चाहिए। (५) यदि शिष्य रोगी हो तो समय से उठकर दातून, पानी आदि देना चाहिए।
बौद्ध शिक्षण-प्रणाली में ऐसा विधान था कि शिष्य के रोगी हो जाने पर उपाध्याय को शिष्य की वे सभी सेवायें करनी होती थीं जो शिष्य को उपाध्याय के प्रति करनी होती थी।
इनके अतिरिक्त 'मिलिन्दप्रश्न'१०५ में उपाध्याय के निम्न पच्चीस कर्तव्यों का उल्लेख है(१) उपाध्याय को शिष्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। (२) किस कार्य में सावधान रहे और किस कार्य में नहीं, इसका उपदेश देते रहना
चाहिए। (३) कर्तव्याकर्तव्य का सदा उपदेश देते रहना चाहिए। (४) शिष्य के शयन आदि पर ध्यान रखना चाहिए। (५) बीमार होने पर उसकी सेवा करनी चाहिए। (६) शिक्षार्थी ने क्या पाया, क्या नहीं पाया, इसका ध्यान रखना चाहिए। (७) शिक्षार्थी के विशेष चरित्र को जानना चाहिए। (८) भिक्षापात्र में जो मिले, उसे बांटकर खाना चाहिए। (९) उसे (विद्यार्थियों को) सदा उत्साह देते रहना चाहिए। (१०) अमुक आदमी की संगति कर सकते हो, ऐसा निर्देश देना चाहिए। (११) अमुक गाँव में जा सकते हो, यह बता देना चाहिए। (१२) अमुक विहार में जा सकते हो, यह निर्देशित कर देना चाहिए। (१३) अमुक के साथ बातचीत नहीं करनी चाहिए। (१४) शिक्षार्थी के दोषों को क्षमा कर देना चाहिए। (१५) पूरे उत्साह के साथ सिखाना चाहिए। (१६) शिक्षा बिना किसी अन्तराल के देना चाहिए। (१७) किसी बात को छिपाना नहीं चाहिए।
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