Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व
१७९ एक ओर का कपाल टूटा हो, (घ) सकलकुट - जो घड़ा पूर्ण हो। इसी तरह कुछ शिष्य छिद्रकुट, कुछ खण्डकुट, कुछ बोटकुट तथा कुछ पूर्णकुट के समान होते हैं।
(३) चालिणी- कुछ शिष्य चालिणी (छलनी) के समान होते हैं, जो गुरु के वक्तव्य को एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं।
(४) छन्ना- कुछ शिष्य दूध छानने के छन्ने (परिपूषग) की भाँति होते हैं। जिस प्रकार दूध या घी छानने पर नीचे चला जाता है और गन्दगी ऊपर रह जाती है, उसी प्रकार कुछ शिष्य दोष और अवगुण ही ग्रहण करते हैं।
(५) हंस- कुछ शिष्य हंस के समान होते हैं, जैसे- हंस जलमिश्रित क्षीर में से क्षीर को ग्रहण कर लेता है और नीर को छोड़ देता है, उसी प्रकार कुछ शिष्य गुणों को ग्रहण कर लेते हैं और दोषों को छोड़ देते हैं।
___ (६) महिष - कुछ शिष्य महिष के समान होते हैं, जैसे महिष तालाब में घुसकर जल को गन्दा कर देता है जिसके कारण जल को न स्वयं ही पी पाता है और न दूसरा ही वैसे ही कुछ शिष्य व्याख्यान के प्रारम्भ होने पर आचार्य को अनेक प्रकार की विकथाओं से इस प्रकार थका देते हैं कि वे न तो उसे ही पढ़ा पाते हैं और न दूसरे विद्यार्थी को ही।
(७) मेढ़ा- कुछ शिष्य मेढ़े की तरह होते हैं। जिस प्रकार मेढ़ा मुँह को आगे की ओर झुकाकर चुपचाप जलग्रहण करता है, उसी प्रकार शिष्य आचार्य को उत्तेजित किये बिना चुपचाप शिक्षा ग्रहण करता है।
(८) मच्छर- कुछ शिष्य मच्छर के समान होते हैं जो बैठते ही काट लेते हैं।
(९) जलोगा- कुछ शिष्यों को जलोगे की भाँति बताया गया है। जलोगा जो शरीर को किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाये बिना रुधिर का पान करता है, ऐसे शिष्य आचार्य को किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाये बिना श्रुतादि ज्ञान का पान करते हैं।
(१०) बिलाड़ी- कुछ शिष्यों को उस बिलाड़ी के समान बताया गया है जो दूध को जमीन पर गिराकर बाद में उसे चाटती है। इसी प्रकार कतिपय शिष्य प्रमादवश जब आचार्य का व्याख्यान होता है तो ध्यान नहीं देते और व्याख्यान के समाप्त हो जाने पर दूरों की बातों को सुनने की कोशिश करते हैं।
(११) जाहग- कुछ शिष्य जाहग के समान होते हैं। जाहग जो थोड़ा-थोड़ा दूध गिराकर चाटता है, वैसे ही कुछ शिष्य पूर्वग्रहीत अर्थ को याद करके प्रश्न पूछते हैं और आचार्य को कष्ट नहीं देते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org