Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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१८८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (३) दूसरी योनिवाला प्राणी। (४) माता, पिता तथा अर्हत् का घातक। (५) स्त्री-पुरुष दोनों लिंगवाला व्यक्ति। (६) जो पात्र रहित हो। (७) जो चीवर रहित हो। (८) जो पात्र और चीवर दोनों रहित हो। (९) जो दूसरे से पात्र मांगकर ले आया हो। (१०) जो दूसरे से चीवर मांग लाया हो। (११) जो मुफ्त के पात्र और चीवर दोनों धारण किये हो।
प्रव्रज्या संस्कार पन्द्रह वर्ष की आयु में तथा उपसम्पदा बीस वर्ष की आयु में सम्पन्न होता था। प्रव्रज्या को प्रत्येक बौद्ध के लिए मोक्षदायक माना गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि प्रव्रज्या प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए थी। ‘जातकों' में ऐसा उल्लेख मिलता है कि राजकुमारों की शिक्षा सोलह वर्ष की उम्र में पूर्ण हो जाती थी।१०२ डॉ०सिंह ने बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था की विशेषता बताते हुए लिखा है - बुद्ध के समय की यह विशेषता देखने को मिलती है कि सामान्यतया १६-१८ वर्ष की उम्र में व्यक्ति अपना अध्ययन समाप्त करके गृहस्थ बन जाते थे, जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक होते थे, जिनका उद्देश्य किसी विषय में विशेष योग्यता प्राप्त करने की रहती थी, वे किसी प्रमुख शिक्षण केन्द्र में चले जाते थे।१०३ तक्षशिला में उच्च शिक्षा की व्यवस्था थी और वय प्राप्त होने अथवा सोलह वर्ष की आयु हो जाने पर ही विद्यार्थी विद्याध्ययन के लिये जाते थे।१०४ शिक्षार्थी के लक्षण
'मिलिन्दप्रश्न'१०५ में शिक्षार्थी (श्रमण) के बीस लक्षण बताये गये हैं(१) अरण्य, वृक्षमूल तथा शून्यागार - इन तीन श्रेष्ठ भूमियों में वास करना। (२) सभी प्रकार की अच्छी बातों में आगे रहना। (३) अच्छे नियमों में प्रतिष्ठित रहना। (४) सदाचारी होना। (५-६) शान्त-दान्त होकर विहार करना।
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