Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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शिक्षक की योग्यता एवं दायित्व
१५३ है तो धर्माचार्य का आध्यात्मिकता से सम्बन्ध है। धर्माचार्य धर्म-प्रवचन के द्वारा लोगों के मन में विशुद्ध आचार को प्रतिष्ठित करते थे। धर्माचार्य के पाँच प्रकार निरुपित हैं७९(१) प्रव्राजकाचार्य- सामायिक व्रत आदि का आरोपण करनेवाले प्रव्राजकाचार्य
कहलाते थे। (२) दिगाचार्य- सचित्त (शिष्य-शिष्याएँ) अचित्त और मिश्र वस्तु (वस्त्रादियुक्त
शिष्य-शिक्षाएँ) के ग्रहण की आज्ञा प्रदान करनेवाले आचार्य दिगाचार्य
कहलाते थे। (३) उद्देशाचार्य- सर्वप्रथम श्रुत का उपदेश देनेवाले तथा मूल सुत्तागम का अध्ययन
करानेवाले को उद्देशाचार्य कहते थे। (४) समुद्देशाचार्य- श्रुत की गम्भीर वाचना देनेवाले और श्रुत में स्थिर करनेवाले
आचार्य समुद्देशाचार्य कहलाते थे। (५) आम्नाचार्य वाचकाचार्य- उत्सर्ग अपवाद रूप आम्नाय अर्थ का प्रतिपादन करनेवाले आचार्य आम्नाचार्य वाचकाचार्य कहलाते थे।
स्थानांग में ज्ञान, उपशम आदि गुणों की अपेक्षा से आचार्य के चार८० प्रकार बताये गये हैं(१) आमलक मधुर फल के समान– कोई आचार्य आँवले के फल के समान
अल्पमधुर होते हैं। (२) मुद्धीकामधुर फल के समान– कोई आचार्य दाख के फल के समान मधुर
होते हैं। (३) क्षीरमधुर फल के समान– कोई आचार्य दूध-मधुर फल के समान अधिक
मधुर होते हैं। (४) खण्डमधुर फल के समान- कोई आचार्य खाँड-मधुर फल के समान बहुत
अधिक मधुर होते हैं। पुनः करण्डक की उपमा देकर आचार्य के चार प्रकार बताये गये हैं८१(१) चाण्डाल अथवा चर्मकार के करण्डक के समान- जैसे चाण्डाल अथवा
चर्मकार के करण्डक में चमड़े को छीलने-काटने आदि के उपकरणों, चमड़े के उपकरणों और चमड़े के टुकड़ों आदि के रखे रहने से वह असार या निकृष्ट
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